बहुत पुरानी कहानी है :--
एक धोबी बाप-बेटा अपने गधे पर कपड़ों गठरी लादे चले जा रहे थे। उन्हें देख एक आदमी ने कहा - "देखो, कितने मूर्ख हैं। सवारी है फिर भी पैदल चले जा रहे हैं।" यह सुन बाप गधे पर बैठ गया, बेटा चलते हुए जाने लगा। कुछ आगे गए तो अन्य एक आदमी ने कहा - "देखो, छोटा-सा बेटा तो चलकर जा रहा है और बाप आराम से बैठा है।" यह देख बाप उतर गया और बेटे को गधे पर बैठा दिया। थोड़ा और आगे चलने पर लोगों ने कहा - "देखो, बूढ़ा बाप तो चल कर जा रहा है और जवान बेटा बैठा हुआ है।" यह सुन बाप-बेटे दोनों गधे पर बैठ कर जाने लगे। थोड़ा और आगे चलने पर लोगों के समूह ने कहा - "अरे, कितने कसाई हैं ये लोग! इतना बोझा ढोकर तो गधा मर ही जाएगा।"
यह सुन बाप-बेटे ने सोचा कि अब गधे को आराम देना चाहिए। उन्होंने गधे के अगले और पिछले पैरों में रस्सी बांधी और उसके बीच में एक डंडा फँसाकर उसे भार की तरह लाद कर ले जाने लगे। यह दृश्य देख तो लोग ठहाके पर ठहाका लगा उन्हें मूर्ख कहने लगे।
सचमुच यह दुनिया एक ऐसी नागिन है जो चलते हुए को डँसती है, सोए हुए को भी तो बैठे हुए को भी। किसी को नहीं छोड़ती। जितने मुँह उतनी बातें होती हैं। इस दुनिया रूपी नागिन को काबू में करना किसी के बस का नहीं।
लोग क्या कहेंगे -- इस डर से सभी डरते हैं। अपने आत्म सम्मान को बचाने के लिए अनचाहे, गैर-जरूरती काम करते हैं। लोकलाज की रक्षा के लिए विभिन्न लोकाचारों, परंपराओं का पालन करते हैं चाहे वे कितने ही अंधविश्वास पूर्ण क्यों न हों। और अपना काफी भयंकर नुकसान करते रहते हैं। दुःख में मरते रहते हैं।
कहा भी गया है चाहे कितना ही अच्छा काम क्यों न हो यदि वह लोकाचार के विरुद्ध है तो उसे कभी अच्छा नहीं कहा जाएगा। बड़े-बड़े वैज्ञानिक ही नहीं राजा-महाराजा भी लोकाचार के अनुसार अपनी इच्छा के विरुद्ध विभिन्न असहनीय कार्य करते हैं। भगवान राम ने भी एक धोबी के उलाहने पर अपनी प्रिय पत्नी सीता का परित्याग कर दिया। जबकि वे विश्वस्त थे कि सीता पूर्ण पवित्र है। क्योंकि वे स्वयं अग्नि परीक्षा कराके लाए थे। क्या वे धोबी को फाँसी पर नहीं चढ़ा सकते थे?
लोकतंत्र में लोगों की इच्छा सर्वोपरि मानी जाती है। ज्यादा लोग अगर गलत बात का पक्ष लें तो उसी को सही माना जाएगा। इसलिए कहा गया है कि प्रजातंत्र मूर्खों की सरकार होती है। भगवान राम लोकतंत्र को मान्यता देते रहे। मर्यादा पुरुषोत्तम होकर भी सदा दुःख झेलते रहे। हर क्षेत्र में आदर्श की स्थापना करने के बावजूद खुद दुःखी रहे तो दूसरों को भी एक प्रकार से दुःखी करते रहे।
इसी प्रकार लोग क्या कहेंगे, इसका ध्यान रखने वाला व्यक्ति पंगु बन कर रह जाता है। कोई नया कार्य नहीं कर पाता। कई उत्तम कार्य में संलग्न व्यक्ति भी लोगों की आलोचना सुनकर अपने लक्ष्य से पिछड़ जाते हैं। कोई कार्य कितना ही अच्छा क्यों न हो, चाहे कितने ही लोग उसकी प्रशंसा क्यों न करें, कोई न कोई तो उसकी आलोचना करेगा ही। इसलिए लोग क्या कहेंगे से डरने वाले व्यक्ति जीवन में कभी सफल नहीं हो सकते।
क्या इस दुनिया रूपी नागिन पर काबू पाने का कोई उपाय नही?
इसी के समाधान हेतु एक घटना उल्लेखनीय है। एक सँपेरन साँप को नचा रही थी। किसी ने पूछा "क्या तुमको साँप से डर नहीं लगता?" सँपेरन ने क्रोध में आकर कहा - "साँप मुझसे डरता है, मैं उससे नहीं।"
अतः देखा गया है कि जो लोग दुनिया से नहीं डरते, दुनिया उनके काबू में रहती है। सारी दुनिया उनके पीछे चलती है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम के विपरीत कृष्ण का उदाहरण लें जिन्होंने कालिदमल के सिर पर नाच नाच कर उसको यमुना से भगा दिया। जो चोर भी कहलाए, रणछोड़ भी कहलाए, भँवरे भी कहलाए, गीताज्ञान के प्रवर्तक भी माने गए, तो 16,108 रानियों को अपनाये भी। असुर द्वारा अपवित्र जिन अबलाओं को कोई भी अपनाने के लिए तैयार नहीं हुआ उन्हें अपनी पटरानी बनाया। उन्होंने लोगों की परवाह नहीं की। इसीलिए सदा हँसते रहे, सबको हँसाते रहे। जीवन में सफल हुए।
कुछ सफल महापुरुषों का उदाहरण लें -- समाज सुधार को निकले स्वामी दयानंद सरस्वती, स्वतंत्रता संग्राम में कूद अछूतोद्धार को निकले महात्मा गांधी, हिंदु संगठन के लिए निकले डॉ. हेडगेवार, .... आदि सभी को लोगों की हजारों आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था। पर उन्होंने किसी की परवाह नहीं की, आगे बढ़ते रहे, इसलिए लक्ष्य में सफल हुए।
दूसरी और अमिताभ बच्चन को देखें। लोग क्या कहेंगे - इसकी परवाह न कर उन्होंने हर तरह का अभिनय किया। जोकर बन 'जिसकी बीवी मोटी ...' गाना गाया, तो वह गाना बच्चे-बच्चे की जुबान पर आ गया। सिने अभिनेता जैसी पोषाक पहनते हैं वह फैशन बन जाती है। लोग खुशी खुशी उसे अपना लेते हैं। एक फिल्म का गाना भी उल्लेखनीय है -- "खुल्लम-खुल्ला प्यार करेंगे हम दोनों, इस दुनिया से नहीं डरेंगे हम दोनों।" वह गाना भी बच्चों की जुबान पर आ गया। अतः दुनिया से न डरनेवाले लोगों के पीछे दुनिया चलने लगती है। उसके इशारों पर नाचती है।
इसका मतलब यह नहीं है कि हम भी लोकलाज छोड़कर ऐसे अनोखेपन हेतु छिछोरे कार्य करें। और दुनिया रूपी नागिन को अपना अनुकरण करने व अपने गाने की धुन पर नचाने का प्रयास करें। हमें लोकाचार का पालन करना भी आवश्यक होता है। कार्यालय की मर्यादा का भी ख्याल रखना चाहिए। ऐसी कोई बात न करनी चाहिए जिससे कि हम उपहास के पात्र बनें। लेकिन यदि हमारा लक्ष्य सही है हम अपनी राह पर सही हैं तो हमें लोगों की आलोचना का ख्याल नहीं करना चाहिए। तभी हम जीवन में सफल हो सकेंगे और धुन के पक्के बन अपने मार्ग पर चलते रहे तो एक दिन लोग हमारे पीछे चलने लगेंगे।
15 Feb 2007
लोग क्या कहेंगे?
Posted by हरिराम at 13:05
Labels: शिक्षाप्रद कथा
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1 comment:
Hariraam Bhai,
दुनियाँ की दोनों जटिल तस्वीरे दो उम्दा उदाहरणों के द्वारा जिस प्रकार पेश किया है सराहनीय है…बधाई!!
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