21 Feb 2007

एड्स की प्राकृतिक चिकित्सा

संयुक्त राष्ट्र एड्स रोकथाम अभियान का हिन्दी वेबपन्‍ना देखा। हिन्दी में इस बारे में जानकारियाँ पाकर भारतीय जनता अवश्य ही लाभान्वित होगी। महामारी एड्स अभी तक लाइलाज है और दिनों दिन अधिकाधिक लोगों में फैलती जा रही है। जन्मजात बच्चे भी इससे बचे नहीं रह सकते।

एड्स की रोकथाम हेतु विभिन्न अभियान फिलहाल इससे बचने की जानकारियों प्रदान करने तक सीमित हैं। हजारों अनुसन्धान अवश्य चल रहे हैं, लेकिन अभी तक कोई सही इलाज या उपचार या टीका सफलता के साथ घोषित नहीं हो पाया है।

किसी समस्या के समाधान या निवारण के पूर्व उसके कारण जानना आवश्यक हैं। अतः देखें कि एड्स के कारण क्या है?

एड्स का कारण है- मानवीय रोग-प्रतिरक्षा न्यूनता विषाणु (Human Immuno deficiency Virus)

जैसा कि इसके नाम के प्रथम शब्द "मानवीय... (Human)" से ही स्पष्ट है- यह सिर्फ मनुष्यों पर ही आक्रमण करता है। किसी अन्य पशु-पक्षी, कीट-पतंग, मच्छर आदि पर प्रभाव नहीं डाल पाता। आखिर क्यों? इसका क्या कारण है--

देखा जाता है कि पशु-पक्षीगण प्रकृति के नियमों का पालन करते हैं। पशु-पक्षी अपनी संगम-ऋतु (Mating season) में ही समागम करते दिखाई देते हैं।

कोयल बसन्त ऋतु में ही मधुर स्वर में कूकती है - अपने साथी को पुकारने हेतु।

कुत्ते-बिल्लियाँ भी अपनी ऋतु में ही संगम करते दिखाई देते हैं। कहते हैं कि शेर तो वर्ष में सिर्फ एक ही बार संगम करता है। सुना है कि मोर की तो अत्यन्त पावन रूप से प्रजनन क्रिया होती है। मच्छर आदि कीट का प्रजनन भी विशेष ऋतु में ही अधिक तीव्रता से बढ़ता दिखाई देता है।

किन्तु इसके विपरीत आजकल अधिकांश मानव न तो पूर्णिमा, अमावस्या, एकादशी आदि तिथियों, वृहस्पतिवार जैसे वार, रामनवमी, जन्माष्टमी, गोपाष्टमी, दीपावली आदि पावन उत्सवों के अवसरों पर संयम आदि का कोई धार्मिक नियम का पालन करते हैं, न ही संगम के पूर्व शास्त्रों की विधि अनुसार स्नान या शुद्धता को व्यवहार में लाते हैं। प्राकृतिक रूप से ऋतु विशेष में ही संगम के नियम का अनुपालन तो बहुत दूर की बात है।

आगे के शब्दों "रोग-प्रतिरक्षा न्यूनता (Immuno deficiency)" से स्पष्ट है कि मानव की स्वाभाविक रोग-प्रतिरक्षा क्षमता में कमी होना ही एड्स का कारण है। अतः यदि किसी प्रकार मानव की रोग-प्रतिरक्षा क्षमता को बढ़ाया जा सके तो एड्स को काफी हद तक निष्प्रभावी किया जा सकता है।

प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार यहाँ कुछ प्रभावी उपाय दिए जा रहे हैं, जो सरल एवं काफी हद तक कारगर पाए गए हैं।

(1) संयम पालन

सर्वप्रथम आवश्यकता है कि मन को यथासंभव संयमित रखने, मन को आध्यात्मिक चिन्तन में लगाए रखने, सकारात्मक निश्चयात्मक सोच में व्यस्त रखने और शरीर के सबसे मूल्यवान शक्ति-तत्व (वीर्य) को और बेकार नष्ट करने से बचे रहने की। प्रकृति के नियमों का पालन करना इस सन्दर्भ में सर्वाधिक उपयोगी होता है।

(2) अंकुरित अन्न का प्रयोग :

प्राकृतिक चिकित्सा के मूल सिद्धान्त में प्रमुख है प्राकृतिक आहार। यथासंभव प्राकृतिक रूप में ही शुद्ध शाकाहारी आहार लिया जाना चाहिए। जैसे- पके हुए ताजा फल, बिना उबाले गए, या पीसे गए अन्न आदि।

आजकल लोग अधिकांशतः अप्राकृतिक या कृत्रिम आहार लेते हैं। डिब्बा-बन्द, प्लास्टिक की थैलियों में बन्द फास्ट फूड आदि आजकल बच्चों-बच्चों में लोकप्रिय हो गए हैं। जो मानव शरीर को ही नहीं, व्यवहार को भी कृत्रिम बना गए हैं।

उदाहरण के लिए किसी अन्न को लीजिए- मूँग या गेहूँ के दाने? इन्हें यदि हम तोड़ दें, पीस दें या उबाल दें। फिर जमीन में बोयें तो क्या उनके अंकुर निकलेंगे? नहीं। क्यों? क्योंकि ये मर चुके होंगे। इनका प्राणतत्व निकल चुका होगा। इसप्रकार देखें तो मानव का आजकल अधिकांश आहार पकाया गया, पीसा गया, तला गया होता है। अर्थात् मृत आहार, जिसमें जीवनी शक्ति नहीं होती।

इसके विपरीत अंकुरित अन्न में प्रबल जीवनी शक्ति होती है तथा कई प्रकार के विशेष विटामिन तथा तत्व पाए जाते हैं। कहा गया है कि यदि प्रतिदिन भलीभाँति चबाकर अंकुरित अन्न खाया जाए तो नपुंसक भी बलवान बन जाता है, नेत्रज्योति वापस आ सकती है, चश्मा छूट सकता है।

अंकुरित अन्न (मूँग, चना, गेहूँ, सोयाबीन आदि) को कम से कम 12 घण्टे सादे पानी में भिगाने के बाद किसी कपड़े में बाँध कर लटका दिया जाता है। अगले दिन उसमें अंकुर निकल आते हैं। इस अंकुरित अन्न में स्वाद अनुसार अल्प नमक, चीनी या नीम्बू का रस मिलाकर धीरे धीरे भली भाँति चबाकर खाना चाहिए।

(3) सोया दुग्ध-कल्प

सोयाबीन में प्रचुर परिमाण में प्रोटीन तथा रोग-निरोधक तत्व पाए जाते हैं। सोयाबीन का दूध बनाकर इसे लेने पर रोग-निरोधक शक्ति काफी परिमाण में बढ़ती पाई गई है।

विधि:

सोयाबीन के बीजों को कम से कम 24 घण्टे तक पानी में भिगो दें। फिर ग्राईँडर में डालकर या सिल-बट्टे पर एकदम महीन पीस लें। इसमें उचित मात्रा में पानी मिलाकर साफ कपड़े से छान लें। यह तरल द्रव बिल्कुल दूध जैसा होगा। इसे उबाल कर स्वाद अनुसार चीनी मिलाकर हल्का गर्म-गर्म पीया जाता है। किन्तु पीने का तरीका अत्यन्त धीमा होना चाहिए। बिल्कुल धीरे धीरे चुस्की ले-लेकर। एक पाव दूध पीने में आधे घण्टे से कम समय न लगे जैसे। पूरी तरह मुँह की लार के साथ मिलकर पूर्व-पाचित रूप में पेट में जाना चाहिए।

सामान्य दुग्ध-कल्प में देशी गाय का दूध लिया जाता है। इसके प्रयोग से (प्रतिदिन 2 लीटर से 3 लीटर दूध तक) अत्यन्त दुर्बल एवं पतले व्यक्ति का भी 15-20 दिनों में ही वजन 5 से 10 किलो तक बढ़ता देखा गया है। एड्स की रोकथाम हेतु रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए सोयाबीन का दूध अधिक प्रभावी होगा।

(4) भाप स्नान, धूप-स्नान आदि

भाप का स्नान कराकर पसीने के माध्यम से रोगी के शरीर से विषैले तत्वों को पर्याप्त मात्रा में बाहर निकालने पर उसकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता स्वतः बढ़ती है। धूप-स्नान में रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए बारी बारी से लाल एवं हरे रंग के पारदर्शी (सैलोफैन पेपर आदि के) परदे के नीचे रोगी को लिटाकर सेंक देने से काफी लाभप्रद परिणाम मिलते हैं।

(5) प्राणायाम, योगासन एवं मुद्राएँ :

हालांकि यह प्राकृतिक चिकत्सा के सामान्य क्षेत्र से बाहर की बात होगी, किन्तु कुछ सरल एवं व्यावहारिक प्राणायाम, योगासन और योगमुद्राओं से शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता निश्चित रूप से काफी हद तक बढ़ने के अनेक प्रमाण मिले हैं। इनका विवरण अलग लेख में दिया जाएगा।

उपर्युक्त कुछ उपायों से भले ही एड्स पूरी तरह दूर न हो पाए, किन्तु निश्चित रूप से शरीर की रोग-निरोधक क्षमता अवश्य ही बढ़ेगी, मा.रो.न्यू.वि.(HIV) के प्रकोप में कमी आएगी और रोगों का मुकाबला करते हुए अधिक काल तक जीया जा सकेगा।

6 comments:

Anonymous said...

इससे ऐड्स की चिकित्सा होगी कि नहीं पता नहीं पर इतना सत्य है कि मानव को प्रकृति के चक्र के विरुद्ध/प्रतिकूल व्यवहार और आचरण नहीं करना चाहिये .

Pramendra Pratap Singh said...

अचछा लिखा है अगली कड़ी का इन्‍तजार,

Ashish Gupta said...

ye baat to pata nahi ki in sabse AIDS kam ho sakta hai par recipes aur details to bahut gyanvardhak hain.

Anonymous said...

यह जरूर सही है की शुद्ध शाकाहारी भोजन व योग से स्वस्थ रहा जा सकता है. मगर
एड्स का इलाज ऐसे सम्भव है? फिर शोधकार्य की आवश्यकता ही कहाँ है.

और यह, "सबसे मूल्यवान तत्व" कौन सा है?

हरिराम said...

संजय जी, सही प्रश्न किया है आपने? कुछ सुधार कर दिया है, कृपया फिर से पढ़े।

अनुनाद सिंह said...

जानकारी बहुत उपयोगी है; और ये सब तो किसी भी रोग से पीड़ित अथवा बिल्कुल स्वस्थ लोगों के लिये भी उपयोगी होंगी, ऐसा मेरा सोचना है।