11 Sept 2015

10 Yaksha Qes. to 10th Viswa Hindi Sammelan


10वें विश्व हिन्दी सम्मेलन के प्रतिभागियों से 10 यक्ष प्रश्न


निम्न कुछ तथ्यपरक व चुनौतीपूर्ण प्रश्न 10वें विश्व हिन्दी सम्मेलन में पधारे विद्वानों से किए जा रहे हैं। उत्तर अपेक्षित है।


(1)

-- इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड पर अधिकांश प्रत्याशियों एवं आम जनता का अभ्यास क्यों नहीं है?
सन् 1991 में भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा कम्प्यूटरों में भारतीय भाषाओं में काम करने की सुविधा के लिए इस्की कूट (ISCII code) के मानकीकरण के अन्तर्गत हिन्दी तथा 10 ब्राह्मी आधारित भारतीय भाषाओं के लिए एकसमान इनस्क्रिप्ट (Inscript) कीबोर्ड को मानकीकृत किया गया था। इसका व्यापक प्रचार भी किया गया। लेकिन सन् 2000 में विण्डोज में अन्तर्राष्ट्रीय युनिकोड (Unicode) मानक वाली हिन्दी भाषा की सुविधा अन्तःनिर्मित रूप से आने के बाद ‘इस्की कोड’ मृतप्रायः हो गए। किन्तु युनिकोड में भी इन्स्क्रिप्ट कीबोर्ड का वही मानक विद्यमान रहा। इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड के मानकीकरण के दीर्घ 21 वर्षों के बाद राजभाषा विभाग के दिनांक 17 फरवरी 2012 के तहत आदेश जारी किया गया कि "1 अगस्त 2012 से सभी नई भर्तियों के लिए टाइपिंग परीक्षा इन्स्क्रिप्ट कीबोर्ड पर लेना अनिवार्य हो।" हाल ही में अगस्त-2015 में एक केन्द्रीय सरकारी संगठन में हिन्दी पद के लिए हिन्दी टंकण परीक्षा हेतु 40 प्रत्याशी उपस्थित हुए। लेकिन कोई भी इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड पर परीक्षा देने में सक्षम नहीं था, सभी वापस चले गए, सिर्फ 3 प्रत्याशियों ने ही इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड पर परीक्षा देने का प्रयास किया, लेकिन लगभग 500 शब्दों के प्रश्नपत्र में से अधिकतम टंकण करनेवाला प्रत्याशी भी 10 मिनट के समय में सिर्फ 52 शब्द टाइप कर पाया। इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड पर आम जनता या प्रत्याशियों का अभ्यास न होने के क्या कारण हैं और इसका क्या निवारण किया जा रहा है?

(2)

-- हिन्दी तथा भारतीय भाषाओं में कम्प्यूटरों में इनपुट के लिए विद्यार्थियों तथा आम जनता के लिए इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड पर प्रशिक्षण व्यवस्था क्यों नहीं है?

राजभाषा विभाग द्वारा हिन्दी टंकण एवं आशुलिपि प्रशिक्षण भी पिछले लगभग 10-12 वर्षों से कम्प्यूटरों पर ही दिया जा रहा है। मानकीकृत इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड पर टंकण करने हेतु प्रशिक्षण दिया जाता है। किन्तु यह प्रशिक्षण केवल केन्द्रीय सरकारी कर्मचारियों को ही दिया जाता है। विद्यार्थियों तथा सरकारी नौकिरियों में टंकण तथा आशुलिपिक पदों पर नई भर्ती के लिए प्रत्याशियों या आम जनता को इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड पर प्रशिक्षण देने हेतु देशभर में कोई पर्याप्त/उचित व्यवस्था कब तक की जाएगी?

(3)

-- डाकघरों से हिन्दी में पते लिखे पत्रों की रजिस्ट्री एवं स्पीड पोस्ट की रसीदें हिन्दी में कबसे मिलेंगी?

डाकघरों (post offices) में स्पीड पोस्ट या रजिस्टरी से हिन्दी में पते लिखे पत्र भेजने पर भी रसीद अंग्रेजी में ही दी जाती है, क्योंकि बुकिंग क्लर्क केवल अंग्रेजी में कम्प्यूटर में टाइप करता है। 1991 अर्थात् गत 24 वर्ष पहले से इन्स्क्रिप्ट की बोर्ड मानकीकृत होने के तथा निःशुल्क व अन्तर्निर्मित रूप से सन् 2000 से सभी कम्प्यूटरों उपलब्ध होने के बावजूद अभी तक डाकघरों में हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में पते लिखे पत्रों की बुकिंग रसीद केवल अंग्रेजी में ही क्यों दी जा रही है? इसीप्रकार रेलवे रिजर्वेशन काउंटर पर टिकट लेते वक्त बुकिंग क्लर्क कम्प्यूटर में हिन्दी में विवरण कबसे दर्ज करेंगे?
(
4)

-- भारत में बिकने वाले सभी मोबाईल/स्मार्टफोन में हिन्दी आदि संविधान में मान्यताप्राप्त 22 भाषाओं में एस.एम.एस., ईमेल आदि करने हेतु पाठ के आदान-प्रदान की सुविधा अनिवार्य रूप से क्यों नहीं मिलती?

-- राजभाषा विभाग द्वारा सभी इलेक्ट्रानिक उपकरण द्विभाषी/बहुभाषी ही खरीदने के लिए 1984 से आदेश जारी किए गए हैं, लेकिन भारत में बिकनेवाले सभी मोबाईल/स्मार्टफोन में हिन्दी तथा संविधान में मान्यताप्राप्त 22 भाषाओं की सुविधा अनिवार्य रूप से उपलब्ध होनी चाहिए। इसके लिए ट्राई द्वारा आदेश क्यों नहीं जारी जाते? कब तक यह सुविधाएँ अनिवार्य रूप से उपलब्ध होंगी?

(5)

हिन्दी माध्यम से विज्ञान, तकनीकी, वाणिज्य, मेडिकल, अभियांत्रिकी आदि की उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रम कब तक उपलब्ध होंगे?

अभी तक विज्ञान, तकनीकी, वाणिज्य, मेडिकल, अभियांत्रिकी आदि की उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रम हिन्दी में क्यों उपलब्ध नहीं कराए जा सके हैं तथा कब तक उपलब्ध करा दिए जाएँगे एवं इन विषयों में हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में शिक्षा कबसे शुरू हो पाएगी?

(6)

केन्द्रीय सरकारी नौकरियों में नई भर्ती के लिए अंग्रेजी के साथ साथ हिन्दी में भी काम करने में सक्षम प्रत्याशियों को प्राथमिकता दिए के आदेश कब से जारी होंगे?

अभी तक केन्द्र सरकारी नौकरियों में भर्ती के लिए अंग्रेजी का ज्ञान होना अनिवार्य है। राजभाषा अधियनियम के अनुसार केन्द्रीय सरकारी कर्मचारियों को हिन्दी शिक्षण योजना के अन्तर्गत हिन्दी का सेवाकालीन प्रशिक्षण दिलाया जाता है एवं परीक्षाएँ पास करने पर पुरस्कार स्वरूप आर्थिक लाभ दिए जाते हैं, जिसमें केन्द्र सरकार को काफी खर्च करना पड़ता है और हिन्दी प्रशिक्षण प्राप्त कर्मचारी भी हिन्दी में सरकारी काम पूरी तरह नहीं कर पाते। अतः बेहतर तथा बचत देते वाला उपाय यह होगा यदि आम जनता व प्रत्याशियों के लिए हिन्दी प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाए एवं अंग्रेजी के साथ साथ हिन्दी का कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त कर्मचारियों को सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता दी जाए। यह व्यवस्था कब तक लागू की जाएगी?

(7)

"भारतीय मानक - देवनागरी लिपि एवं हिन्दी वर्तनी" आईएस 16500:2012 भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा अगस्त 2012 में नवीनतम मानक जारी किए गए थे, जिनका व्यापक प्रचार किया जाना तथा इन्हें सभी हिन्दी कर्मियों, हिन्दी शिक्षकों, प्राध्यापकों, हिन्दी भाषियों को निःशुल्क जारी किया जाना आवश्यक है? लेकिन इस पुस्तिका को बेचा जा रहा है और केवल खरीदनेवाले व्यक्ति को ही इसका उपयोग करने का लाईसैंस जारी किया जा रहा है। क्या मानकों के अनुसार देवनागरी लिपि तथा हिन्दी वर्तनी का उपयोग करने के लिए हरेक हिन्दी-कर्मियों, हिन्दी-भाषियों को भारतीय मानक ब्यूरो से लाईसैंस खरीदना होगा? यदि हाँ, तो क्या सभी हिन्दी-भाषी लाईसैंस खरीद पाएँगे? इसप्रकार विश्वभर में शुद्ध हिन्दी का उपयोग कैसे सफल हो पाएगा? इन मानकों के आधार पर बने हिन्दी वर्तनीशोधक (spell checker) सभी साफ्टवेयर तथा ईमेल व इंटरनेट ब्राऊजरों पर कब तक उपलब्ध हो सकेंगे?

(8)

"भारत सरकार के सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के “भारतीय भाषाओं के लिए प्रौद्योगिकी विकास” प्रभाग द्वारा हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं के लाखों रुपये मूल्य के सॉफ्टवेयर उपकरण निःशुल्क उपलब्ध कराए जा रहे हैं। वेबसाइट पर ये निःशुल्क डाउनलोड के लिेए भी उपलब्ध कराए गए हैं। किन्तु अधिकांश लोग इतना भारी डाउनलोड करने में समर्थ नहीं हो पाते। मांगकर्ता व्यक्ति को इनकी सी.डी. भी निःशुल्क भेजी जाती है। इसमें सरकार का काफी खर्च भी होता है। यदि इनमें से हिन्दी तथा भारतीय भाषाओं के कुछ प्रमुख फोंट्स एवं सॉफ्टवेयरों को विण्डोज, लिनक्स, आईओएस आदि आपरेटिंग सीस्टम्स के ओटोमेटिक अपडेट के पैच में शामिल करवा दिया जाए तो अनिवार्यतः भारत में प्रयोग होनेवाले सभी कम्प्यूटरों में ये स्वतः उपलब्ध हो सकते हैं और विश्वभर की समस्त जनता हिन्दी तथा भारतीय भाषाओं का उपयोग करने में समर्थ हो पाती और सरकार के खर्च की भी बचत होती। यह कार्य कब तक करवा दिया जाएगा?

(9)

"युनिकोड में हिन्दी तथा भारतीय भाषाओं के मूल व्यंजनों, संयुक्ताक्षरों की एनकोडिंग नहीं हुई है, जिसके कारण इन भाषाओं की प्रोसेसिंग "रेण्डरिंग इंजिन" आदि तीन-स्तरीय जटिल अलगोरिद्म के तहत होती है और ‘पेजमेकर’, ‘कोरल ड्रा’ आदि डी.टी.पी. पैकेज के पुराने वर्सन में युनिकोडित भारतीय फोंट्स का प्रयोग नहीं हो पाता। इनके नए वर्सन काफी मंहगे होने के कारण छोटे प्रेस प्रयोग नहीं कर पाते। युनिकोडित हिन्दी फोंट से पी.डी.एफ. बनी फाइल को वापस पाठ (text) रूप में सही रूप में बदलना भी संभव नहीं हो पाता। और समाचार-पत्रों/पत्रिकाओं को अपने मुद्रित अंक के लिए पुराने 8-बिट फोंट में पाठ संसाधित करना पड़ता है तथा वेबसाइट पर ई-पत्र-पत्रिका के लिए युनिकोडित 16-बिट फोंट में संसाधित करने की दोहरी प्रक्रिया अपनानी पड़ती है। जिससे हिन्दी तथा भारतीय भाषाओं का प्रयोग कठिन बन जाता है। युनिकोड में मूल व्यंजनों तथा संयुक्ताक्षरों की एनकोडिंग करवाने या इण्डिक कम्प्यूटिंग को एकस्तरीय और सरल बनाने के लिए क्या प्रयास किए जा रहे हैं।

(10)

भारत को अंग्रेजों की दासता से स्वाधीन हुए 68 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन अभी तक अंग्रेजी की दासता से स्वाधीन नहीं हो पाया। इसका एक कारण है शिक्षा में हिन्दी की नहीं अंग्रेजी की अनिवार्यता है। शिक्षा भले ही मौलिक अधिकार के अन्तर्गत आती है, लेकिन शिक्षा व्यवस्था प्रान्तीय सरकारों के अधीन हो रही है। यदि शिक्षा प्रणाली को केन्द्र सरकार अपने हाथ में लेती और त्रिभाषी(प्रान्तीय भाषा – हिन्दी – अंग्रेजी) फार्मूले को भी सही रीति लागू करे तो पहली से 10वीं कक्षा तक सिर्फ 10 वर्ष में अधिकांश जनता हिन्दी में निपुण हो जाती।
यदि गाँव-गाँव में केन्द्रीय विद्यालय, हर प्रखण्ड/जिला स्तर पर केन्द्रीय महाविद्यालय और हर प्रान्त में केन्द्रीय विश्वविद्यालय चालू कर दिए जाएँ तो समग्र भारत में हिन्दी और भारतीय भाषाओं का समुचित विकास और प्रयोग सुनिश्चत हो सकता है। इस दिशा में क्या कदम उठाए जा रहे हैं और इसे कब तक लागू किया जा सकेगा?

उल्लेखनीय है कि 9वें विश्व हिन्दी सम्मेलन के विद्वानों से 10 यक्ष प्रश्न पूछे गए थे, जिनका उत्तर अभी तक अपेक्षित है।

n  हरिराम