14 Feb 2007

सबसे बड़ा पाप - वायु प्रदूषण

इक्कीसवीं सदी के आरम्भ में यह प्रश्न सबके सामने मुँह बाये खड़ा है -- सबसे बड़ा पाप क्या है? आधुनिक युग का सबसे बड़ा पाप माना जाएगा -- "वायु प्रदूषण"

कुछ लोगों को यह बात अवश्य आश्चर्य-जनक लगेगी। लेकिन यह एक कटु सत्य एवं सही तथ्य है। वैसे तो प्रदूषण फैलाना अपने आप में बुरी बात है, इसलिए पाप है। लेकिन सबसे बड़ा पाप है - वायु प्रदूषण।

क्योंकि, इन्सान ही नहीं, बल्कि कोई भी जीव भोजन के बिना कुछ दिन जीवित रह सकता है, पानी के बिना कुछ घण्टे जीवित रह सकता है। किन्तु साँस लिए बिना कुछ मिनट ही शायद जीवित रह पाए। जीने के लिए प्राणवायु जरूरी है। अर्थात् ऑक्सीजन जरूरी है।

वायु-प्रदूषण से मानव की साँस में घुलकर अनेक भयंकर जहरीले तत्त्व प्रवेश कर जाते हैं और व्यक्ति आजकल कई भयंकर एवं लाइलाज बीमारियों का शिकार होता जा रहा है। इन्सान दुर्बल, अशक्त एवं तेजहीन ही नहीं होता, बल्कि उसका जीवन अपंग भी हो जाता है। हृदय रोग, श्वास रोग, खाँसी, सर्दी, जुकाम, निमोनिया, आँखों की ज्योति का धीमा पड़ना, उल्टी, चक्कर आना, रक्त अशुद्ध होना, कैन्सर, वात आदि अनेकानेक असाध्य व गम्भीर रोगों का मूल कारण है, अशुद्ध हवा में साँस लेना।

वायु प्रदूषण कई रूपों में होता है। गाड़ी, मोटर आदि के ईंधन पेट्रोल व डीजल के जलने से निकलनेवाला धुआँ वायु-प्रदूषण का एक बड़ा कारण है। कुछ महानगरों के चौराहे का प्रदूषण मशहूर हो गया है। यहाँ पर 10-15 मिनट खड़ा होने पर व्यक्ति की आँखों में जलन व खाँसी आने लगती है। कल-कारखानों में कोयला व अन्य ईंधन के जलने से निकलनेवाला धुँआ प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण है।

कुछ उद्योगों में उपयोग किए जानेवाले कुछ रसायनिक पदार्थ अत्यन्त जहरीले होते हैं। जिनका रिसाव हवा में तीव्र जहर घोल देता है। भोपाल गैस काण्ड में हुई हजारों लोगों की मौत इतिहास की एक कलंकमय घटना बन गई है।

शहरों में लोग जहाँ तहाँ कूड़ा-करकट, अधसूखे घासफूस, पत्तियाँ, लकड़ी, कागज, प्लास्टिक, कोलतार, टायर आदि जलाकर जहरीला धुआँ फैलाते रहते हैं, जो हजारों लोगों को चिरकालिक असाध्य रोगों का उपहार दे जाता है। इसी तथ्य को मद्देनज़र रखते हुए कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश से मुम्बई, बैंगलोर आदि नगरों में कूड़ा-करकट को जलाने पर प्रतिबन्ध लगाया हुआ है, इसके उल्लंघन पर कठोर दण्ड दिया जाता है। कूड़ा-करकट का पुनः उपयोग करके इससे खाद, बिजली व ईंधन-केक भी बनाई जाती है। अब सभी शहरों में ऐसे कानून लागू किए जाने आवश्यक हो गए हैं। इसका अनुकरण करते हुए समस्त नगर निगमों तथा नगरपालिकाओं द्वारा मानव बस्ती से 3 कि.मी. के दायरे में कूड़ा-करकट जलाने पर प्रतिबन्ध लागाया जाना चाहिए और इसका उल्लंघन करनेवाले को भारी आर्थिक दण्ड का जुर्माना लगाने तथा कारावास की सज़ा का प्रावधान होना चाहिए। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि कई नगम निगमों के कर्मचारी (तथा ठेके के कर्मचारी) स्वयं ही कूड़ा-करकट को उठाकर ले जाने के परिश्रम से बचने के लिए जहाँ-तहाँ गलियों में इकट्ठा करके इसे जला देते हैं, जो काम सिर्फ एक माचिस की तीली जलाने भर में हो जाता है। जो कई घण्टों तक सुलगता रहता है और वातावरण की वायु को जहरीला बना देता है। किन्तु इससे वहाँ रहनेवाले, आने-जानेवाले लोगों को विषाक्त वायु की साँस लेने को मजबूर होकर जहर के घूँट पीने पड़ते हैं।

आजकल प्लास्टिक के कचरे सर्वाधिक पर्यावरण हानि होती है, क्योंकि यह शीघ्र नष्ट नहीं होता। प्लास्टिक के कूड़े के जलने से तो वायु अत्यन्त जहरीली बन जाती है।

अनेक शहरों के कूड़े करकट से पुनःचक्रित (recycle) करके इससे खाद, बिजली, तथा उपयोगी वस्तुएँ बनाई जाती हैं। बैंगलोर शहर में तो प्लास्टिक के कूड़े को गर्म कोलतार (डामर) में डालकर पिघला कर मजबूत सड़कें तक बनाने का प्रयोग किया गया है। हर शहर में ऐसी व्यवस्थाएँ होनी चाहिए।

कुछ लोग सार्वजनिक स्थलों, रेल व बस में बीड़ी-सिगरेट पीकर स्वयं ही विषपान नहीं करते, बल्कि घातक धुआँ उड़ाकर दूसरे लोगों में भी जबरन विषैली गैस प्रविष्ट करवा देते हैं। इससे खाँसी, सिरदर्द से लेकर केन्सर तक बढ़ते हैं। 'धूमपान निषेध' के बोर्ड लगे होने के बावजूद तत्संबंधी नियमों का खुलेआम उल्लंघन होता है। इस दिशा में जनजागृति आवश्यक है कि ऐसे लोगों को सामाजिक तिरस्कार किया जा सके।

वैज्ञानिक अनुसन्धानों से पता चला है कि परोक्ष धूमपान (passive smoking) स्वयं धूमपान करने से भी कहीं अधिक हानिकारक होता है। कई उदाहरण ऐसे मिले हैं कि धूमपान करनेवाले व्यक्ति को तो कोई विशेष बीमारी नहीं हुई, लेकिन उसकी पत्नी को कैन्सर हो गया। क्योंकि धूमपान करनेवाला व्यक्ति तो शुद्ध ऑक्सीजन के साथ तम्बाकू पीता है, और अशुद्ध कार्बन-डाई-ऑक्साइड के साथ निकोटिन जहर हवा में छोड़ता है, जिसे अन्य लोगों को मजबूरन साँस में निगलना पड़ता है, जो अत्यन्त हानिकारक है।

अतः हमारा श्लोगान है:

पान खाओ तो मीठा पान खाओ, पीक निगल लो,
आपको जहाँ तहाँ, थूकने का कोई अधिकार नहीं।
बीड़ी, सिगरेट पीओ शौक से, पर धुआँ निगल डालो,
जहाँ-तहाँ जहर उगलने का तुम्हें कोई अधिकार नहीं॥


हमारा सुझाव है :

विभिन्न बाजारों में, रेल गाड़ी में, कार्यालयों में एक विशेष कक्ष 'धूमपान बार' (Smoking Bar) होना चाहिए। जो एयर कण्डीशण्ड हो, जहाँ बैठकर उन्मुक्त धूमपान किया जा सके और वहाँ धूमपान का धूम बहुकाल तक टिकाऊ बना रहे। ताकि जिस व्यक्ति के पास बीड़ी-सिगरेट खरीदने के लिए पैसे न हों, वह भी यदि उस कक्ष में प्रवेश मात्र कर जाए तो वह स्वतः धूमपान की धूम-सेवन कर सके।

कुछ लोग सड़कों के किनारे मल-मूत्र विसर्जित करके भी भारी वायु प्रदूषण फैलाते हैं। कुछ विदेशी टिप्पणी करते हैं - सड़कों और रेलमार्गों के किनारे टट्टी बैठना ही तो भारतीय संस्कृति है। जहाँ-तहाँ पड़े जीव जन्तुओं के सड़ते हुए शव घातक वायु प्रदूषण करते हैं। इससे महामारी व प्लेग जैसे कई छूत के रोग फैल कर हजारों लोगों का जीवन संकट में डालने का खतरा पैदा होता है। शवों को तत्काल आधार पर दफ़नाकर या दाह करके अन्तिम संस्कार करना चाहिए। सूखी मछली (सुखुआ) भी आसपास के क्षेत्र में काफी दुर्गन्ध फैला कर हवा को गन्दा करती है।

शहरों में गन्दे खुले नाले भी दुर्गन्ध सृजित करके भारी वायु प्रदूषण फैलाते हैं। हालांकि आजकल भूमिगत मल निकास नालियों का प्रचलन बढ़ता जा रहा है, लेकिन रख-रखाव व्यवस्था के अभाव में ये जब तब टूट जाती है या अवरुद्ध होकर सड़कों पर मलजल बहता रहता है, जो वायु प्रदूषण का एक प्रमुख कारक है।

आधुनिक युग के परमाणु अस्त्रों के बाद आजकल अनेक रसायनिक अस्त्र-शस्त्र बन रहे हैं, जो दुश्मन देश की वायु में जहरीले तत्व फैलाकर मानव व जीव ही नहीं, बल्कि पेड़-पौधों तक को नष्ट कर सकते हैं। पृथ्वी के कई स्थलों पर ओजोन परत में विशाल छेद हो गए हैं, जिससे महातूफान आदि प्राकृतिक विपत्तियाँ आए दिन आती रहती हैं।

वायु प्रदूषण के कारण ही आज तेजाबी वर्षा होने के समाचार मिलते हैं। बादलों में भी प्रदूषण भर जाने से वर्षा के जल में भी दूषित कण विद्यमान रहते हैं, जो जीव-जन्तुओं ही नहीं फसल को भी नष्ट कर सकते हैं।

आजकल स्वास्थ्य के लिए योगासन और प्राणायाम का बड़े जोर-शोर से प्रचार हो रहा है। प्राणायाम साँस लेने छोड़ने की विशेष प्रक्रिया मात्र है। प्राणायाम से अनेक रोगों का नाश होने के साथ साथ शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक उत्थान होता है। लेकिन यदि अशुद्ध वायु में प्राणायाम किया गया तो लाभ के वजाए भयंकर हानि हो सकती है।

कई कारखानों/संयंत्रों में प्रदूषण नियंत्रण के लिए करोड़ों रुपये से अधिक खर्च किए गए हैं। धुँवा, धूल व अपशिष्टों के निपटान के लिए सुरक्षित उपाय किए गए हैं। खान में उत्खनित भूमि को फिर से भरकर उस पर व्यापक रूप से फलों आदि के पेड़ लगाए जाते हैं। उड़नशील राख, लाल पंक, चूना-कंकरी आदि का उपयोग करने हेतु नए नए अनुसंधान किए जा रहे हैं।

लाखों लोगों के जीवन को क्षति पहुँचाना सचमुच में सबसे बड़ा पाप है। आइए, इस पाप से स्वयं बचें एवं औरों को भी बचाएँ। इससे बचने के उपायों की तलाश करें।

सबसे बड़ा धर्म :

वायु शुद्धिकरण आज के युग का सबसे बड़ा धर्म माना जाएगा। वायु शुद्धिकरण का सबसे बड़ा साधन है पेड़-पौधे व वनस्पतियाँ, जो कार्बन-डाई-ऑक्साइड को सोखकर ऑक्सीजन विसर्जित करते हैं। यज्ञ व हवन से भी वायु शुद्धि होती है।

प्राचीन काल से ही वृक्षों की पूजा की जाती रही है। धर्मशास्त्रों में बरगद और पीपल के पेड़ लगाने को परमधर्म माना गया है। अब वैज्ञानिक शोध से भी प्रमाणित हुआ है कि पीपल का पेड़ केवल दिन में ही नहीं, बल्कि रात में भी ऑक्सीजन देता है। आइए, अधिकाधिक संख्या में पीपल के पेड़ लगाएँ और सबको प्रेरित करें।

2 comments:

Divine India said...

स्वागत है आपका हिंदी ब्लाग जगत में…वायु-प्रदुषण पर आपका लेख बहुत अच्छा लगा…बधाई स्वीकारें।

हरिराम said...

धन्यवाद! अच्छा होगा इस समस्या के सुझाए गए समाधान सम्बन्धित प्राधिकारियों की नजर में लाए जाएँ। -- हरिराम