31 May 2018

विश्व तम्बाखू निरोध दिवस पर नई दृष्टि

http://www.who.int/campaigns/no-tobacco-day/2018/event/en/

आज विश्व तम्बाखू निरोध दिवस है। विश्व में विभिन्न स्थानों पर तम्बाखू के कुप्रभाव दर्शाते हुए इसके उपयोग से दूर रहने के लिए सेमिनार, पोस्टर, चर्चा-प्रचार गोष्ठियों आदि का आयोजन हुआ। धूमपान व गुटखा, गुंडी, जर्दा आदि से बचने के लिए जागृति अभियान चलाए गए। बताया गया कि प्रतिदिन विश्व में हजारों लोग धूमवान व तम्बाखू खाने से मरते हैं, केन्सर व हृदयरोग से लेकर अस्थमा जैसी गंभीर बीमारियों के शिकार होते हैं। छोटे बच्चे, किशोर, युवतियाँ भी बड़ों को धूमपान करते देखकर इसकी लत लगा बैठते हैं और हजारों रोग फैलते हैं।
परोक्ष धूमपान अधिक खतरनाक
कई मामलों में देखा गया है कि धूम्रपान करने वाले को तो कोई बड़ी बीमारी नहीं होती, लेकिन उसकी धर्मपत्नी को कैंसर हो जाता है। क्योंकि परोक्ष धूम्रपान ज्यादा खतरनाक होता है। क्योंकि जो व्यक्ति बीड़ी-सिगरेट पीता है, वह निकोटीन के साथ ऑक्सीजन खींचकर साँस भरता है, लेकिन जो साँस छोड़ता है- वह कार्बन-डाई-ऑक्साइड मिलाकर, जो 3 गुना ज्यादा जहरीली होती है। उस विसर्जित धूम मिली हवा में जिसे साँस लेना पड़ता है, उससे कई तरह की भयंकर बीमारियाँ हो जाती है।
कई मामलों में देखा गया है कि कुछ लोग टॉयलेट में छुपकर बीड़ी सिगरेट पीकर खिसक जाते हैं, उसके बाद उस धुँआ भरे टॉयलेट में जो कोई भले नर-नारी घुसते हैं उनमें से कुछेक तो चक्कर खाकर बेहोश हो जाते हैं, कुछेक को उलटी भी होने लगती है।
कुछ लोग गाड़ी चलाते-चलाते, सड़क पर चलते-फिरते, गलियारों में घूमते, ऑफिस के दरवाजे के बाहर निकल कर, सिगरेट फूँक जहरीला धूम उगल भाग जाते हैं। हजारों लोगों के लिए बीमारियाँ पैदा करके। कई लोग बीड़ी-सिगरेट पीकर जलते हुए सिरे को बिना बुझाए फेंक कर भाग जाते हैं। जिससे कहीं आग लग जाती है। कहीं जंगल के जंगल जल जाते हैं। प्लास्टिक व फिल्टर के जलने से वायु-प्रदूषण होता है।
मानव व जीवजंतु भोजन के बिना कुछ दिन जिन्दा रह सकते हैं, पानी के बिना कुछ घंटे तक। किन्तु साँस लिए बिना तो दो-चार मिनट भी नहीं जी सकते। अतः वायु-प्रदूषण फैलाना सबसे बड़ा पाप है।
प्रश्न उठता है कि सरकारें तम्बाकू का उत्पादन बंद क्यों नहीं करवा देती? बीड़ी-सिगरेट की फैक्टरियों को जला क्यों नहीं देती??, भारी उत्पाद-शुल्क और टैक्स वसूली के लोभ में यह जहर क्यों फैलने देती हैं???
सरकार ने सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान वर्जित किया है जो, पर्याप्त नहीं है। जिन लोगों को बीड़ी सिगरेट पीने की लत/आदत लग गई है, वे चाहने पर भी नहीं छोड़ पाते। अतः वे बेचारे कहाँ धूमपान करें? इसके लिए सुरक्षित स्थल भी जरूरी है। सरकार यदि तम्बाखू-उत्पादों से भारी टैक्स की आमदनी कर रही है, तो उसका नैतिक कर्तव्य भी बनता है कि धूमपान करनेवालों के लिए सुरक्षित स्थान भी उपलब्ध कराए।
अतः जैसे हवाई अड्डों पर "स्मोक-बार" होते हैं, विकसित राष्ट्रों में स्मोकिंग-जोन होते हैं। जैसे स्वच्छ भारत अभियान में सब जगह, गाँव-गाँव में भी शौचालय बनाए जा रहे हैं, वैसे ही कार्यालयों, बाजारों में “स्मोक-बार” बनाने जरूरी हैं, जिनसे धुँवा बाहर निकलने के लिए काफी ऊँची चिमनी हो, ताकि न केवल धूमपान करने वाले शांति व सम्मान से बैठकर पी सकें, बल्कि दूसरे लोग इस जहरीले धुँए से बच सकें।
कठोर नियम लागू किए जाएँ कि केवल "स्मोक बार" में ही धूमपान किया जा सकता है। बीड़ी-सिगरेट केवल स्मोर-बार में बेची जा सकती है। तभी इस बुरी लत के घातक फल से सामान्य लोगों को सुरक्षा मिल सकती है।

11 Sept 2015

10 Yaksha Qes. to 10th Viswa Hindi Sammelan


10वें विश्व हिन्दी सम्मेलन के प्रतिभागियों से 10 यक्ष प्रश्न


निम्न कुछ तथ्यपरक व चुनौतीपूर्ण प्रश्न 10वें विश्व हिन्दी सम्मेलन में पधारे विद्वानों से किए जा रहे हैं। उत्तर अपेक्षित है।


(1)

-- इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड पर अधिकांश प्रत्याशियों एवं आम जनता का अभ्यास क्यों नहीं है?
सन् 1991 में भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा कम्प्यूटरों में भारतीय भाषाओं में काम करने की सुविधा के लिए इस्की कूट (ISCII code) के मानकीकरण के अन्तर्गत हिन्दी तथा 10 ब्राह्मी आधारित भारतीय भाषाओं के लिए एकसमान इनस्क्रिप्ट (Inscript) कीबोर्ड को मानकीकृत किया गया था। इसका व्यापक प्रचार भी किया गया। लेकिन सन् 2000 में विण्डोज में अन्तर्राष्ट्रीय युनिकोड (Unicode) मानक वाली हिन्दी भाषा की सुविधा अन्तःनिर्मित रूप से आने के बाद ‘इस्की कोड’ मृतप्रायः हो गए। किन्तु युनिकोड में भी इन्स्क्रिप्ट कीबोर्ड का वही मानक विद्यमान रहा। इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड के मानकीकरण के दीर्घ 21 वर्षों के बाद राजभाषा विभाग के दिनांक 17 फरवरी 2012 के तहत आदेश जारी किया गया कि "1 अगस्त 2012 से सभी नई भर्तियों के लिए टाइपिंग परीक्षा इन्स्क्रिप्ट कीबोर्ड पर लेना अनिवार्य हो।" हाल ही में अगस्त-2015 में एक केन्द्रीय सरकारी संगठन में हिन्दी पद के लिए हिन्दी टंकण परीक्षा हेतु 40 प्रत्याशी उपस्थित हुए। लेकिन कोई भी इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड पर परीक्षा देने में सक्षम नहीं था, सभी वापस चले गए, सिर्फ 3 प्रत्याशियों ने ही इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड पर परीक्षा देने का प्रयास किया, लेकिन लगभग 500 शब्दों के प्रश्नपत्र में से अधिकतम टंकण करनेवाला प्रत्याशी भी 10 मिनट के समय में सिर्फ 52 शब्द टाइप कर पाया। इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड पर आम जनता या प्रत्याशियों का अभ्यास न होने के क्या कारण हैं और इसका क्या निवारण किया जा रहा है?

(2)

-- हिन्दी तथा भारतीय भाषाओं में कम्प्यूटरों में इनपुट के लिए विद्यार्थियों तथा आम जनता के लिए इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड पर प्रशिक्षण व्यवस्था क्यों नहीं है?

राजभाषा विभाग द्वारा हिन्दी टंकण एवं आशुलिपि प्रशिक्षण भी पिछले लगभग 10-12 वर्षों से कम्प्यूटरों पर ही दिया जा रहा है। मानकीकृत इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड पर टंकण करने हेतु प्रशिक्षण दिया जाता है। किन्तु यह प्रशिक्षण केवल केन्द्रीय सरकारी कर्मचारियों को ही दिया जाता है। विद्यार्थियों तथा सरकारी नौकिरियों में टंकण तथा आशुलिपिक पदों पर नई भर्ती के लिए प्रत्याशियों या आम जनता को इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड पर प्रशिक्षण देने हेतु देशभर में कोई पर्याप्त/उचित व्यवस्था कब तक की जाएगी?

(3)

-- डाकघरों से हिन्दी में पते लिखे पत्रों की रजिस्ट्री एवं स्पीड पोस्ट की रसीदें हिन्दी में कबसे मिलेंगी?

डाकघरों (post offices) में स्पीड पोस्ट या रजिस्टरी से हिन्दी में पते लिखे पत्र भेजने पर भी रसीद अंग्रेजी में ही दी जाती है, क्योंकि बुकिंग क्लर्क केवल अंग्रेजी में कम्प्यूटर में टाइप करता है। 1991 अर्थात् गत 24 वर्ष पहले से इन्स्क्रिप्ट की बोर्ड मानकीकृत होने के तथा निःशुल्क व अन्तर्निर्मित रूप से सन् 2000 से सभी कम्प्यूटरों उपलब्ध होने के बावजूद अभी तक डाकघरों में हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में पते लिखे पत्रों की बुकिंग रसीद केवल अंग्रेजी में ही क्यों दी जा रही है? इसीप्रकार रेलवे रिजर्वेशन काउंटर पर टिकट लेते वक्त बुकिंग क्लर्क कम्प्यूटर में हिन्दी में विवरण कबसे दर्ज करेंगे?
(
4)

-- भारत में बिकने वाले सभी मोबाईल/स्मार्टफोन में हिन्दी आदि संविधान में मान्यताप्राप्त 22 भाषाओं में एस.एम.एस., ईमेल आदि करने हेतु पाठ के आदान-प्रदान की सुविधा अनिवार्य रूप से क्यों नहीं मिलती?

-- राजभाषा विभाग द्वारा सभी इलेक्ट्रानिक उपकरण द्विभाषी/बहुभाषी ही खरीदने के लिए 1984 से आदेश जारी किए गए हैं, लेकिन भारत में बिकनेवाले सभी मोबाईल/स्मार्टफोन में हिन्दी तथा संविधान में मान्यताप्राप्त 22 भाषाओं की सुविधा अनिवार्य रूप से उपलब्ध होनी चाहिए। इसके लिए ट्राई द्वारा आदेश क्यों नहीं जारी जाते? कब तक यह सुविधाएँ अनिवार्य रूप से उपलब्ध होंगी?

(5)

हिन्दी माध्यम से विज्ञान, तकनीकी, वाणिज्य, मेडिकल, अभियांत्रिकी आदि की उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रम कब तक उपलब्ध होंगे?

अभी तक विज्ञान, तकनीकी, वाणिज्य, मेडिकल, अभियांत्रिकी आदि की उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रम हिन्दी में क्यों उपलब्ध नहीं कराए जा सके हैं तथा कब तक उपलब्ध करा दिए जाएँगे एवं इन विषयों में हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में शिक्षा कबसे शुरू हो पाएगी?

(6)

केन्द्रीय सरकारी नौकरियों में नई भर्ती के लिए अंग्रेजी के साथ साथ हिन्दी में भी काम करने में सक्षम प्रत्याशियों को प्राथमिकता दिए के आदेश कब से जारी होंगे?

अभी तक केन्द्र सरकारी नौकरियों में भर्ती के लिए अंग्रेजी का ज्ञान होना अनिवार्य है। राजभाषा अधियनियम के अनुसार केन्द्रीय सरकारी कर्मचारियों को हिन्दी शिक्षण योजना के अन्तर्गत हिन्दी का सेवाकालीन प्रशिक्षण दिलाया जाता है एवं परीक्षाएँ पास करने पर पुरस्कार स्वरूप आर्थिक लाभ दिए जाते हैं, जिसमें केन्द्र सरकार को काफी खर्च करना पड़ता है और हिन्दी प्रशिक्षण प्राप्त कर्मचारी भी हिन्दी में सरकारी काम पूरी तरह नहीं कर पाते। अतः बेहतर तथा बचत देते वाला उपाय यह होगा यदि आम जनता व प्रत्याशियों के लिए हिन्दी प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाए एवं अंग्रेजी के साथ साथ हिन्दी का कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त कर्मचारियों को सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता दी जाए। यह व्यवस्था कब तक लागू की जाएगी?

(7)

"भारतीय मानक - देवनागरी लिपि एवं हिन्दी वर्तनी" आईएस 16500:2012 भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा अगस्त 2012 में नवीनतम मानक जारी किए गए थे, जिनका व्यापक प्रचार किया जाना तथा इन्हें सभी हिन्दी कर्मियों, हिन्दी शिक्षकों, प्राध्यापकों, हिन्दी भाषियों को निःशुल्क जारी किया जाना आवश्यक है? लेकिन इस पुस्तिका को बेचा जा रहा है और केवल खरीदनेवाले व्यक्ति को ही इसका उपयोग करने का लाईसैंस जारी किया जा रहा है। क्या मानकों के अनुसार देवनागरी लिपि तथा हिन्दी वर्तनी का उपयोग करने के लिए हरेक हिन्दी-कर्मियों, हिन्दी-भाषियों को भारतीय मानक ब्यूरो से लाईसैंस खरीदना होगा? यदि हाँ, तो क्या सभी हिन्दी-भाषी लाईसैंस खरीद पाएँगे? इसप्रकार विश्वभर में शुद्ध हिन्दी का उपयोग कैसे सफल हो पाएगा? इन मानकों के आधार पर बने हिन्दी वर्तनीशोधक (spell checker) सभी साफ्टवेयर तथा ईमेल व इंटरनेट ब्राऊजरों पर कब तक उपलब्ध हो सकेंगे?

(8)

"भारत सरकार के सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के “भारतीय भाषाओं के लिए प्रौद्योगिकी विकास” प्रभाग द्वारा हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं के लाखों रुपये मूल्य के सॉफ्टवेयर उपकरण निःशुल्क उपलब्ध कराए जा रहे हैं। वेबसाइट पर ये निःशुल्क डाउनलोड के लिेए भी उपलब्ध कराए गए हैं। किन्तु अधिकांश लोग इतना भारी डाउनलोड करने में समर्थ नहीं हो पाते। मांगकर्ता व्यक्ति को इनकी सी.डी. भी निःशुल्क भेजी जाती है। इसमें सरकार का काफी खर्च भी होता है। यदि इनमें से हिन्दी तथा भारतीय भाषाओं के कुछ प्रमुख फोंट्स एवं सॉफ्टवेयरों को विण्डोज, लिनक्स, आईओएस आदि आपरेटिंग सीस्टम्स के ओटोमेटिक अपडेट के पैच में शामिल करवा दिया जाए तो अनिवार्यतः भारत में प्रयोग होनेवाले सभी कम्प्यूटरों में ये स्वतः उपलब्ध हो सकते हैं और विश्वभर की समस्त जनता हिन्दी तथा भारतीय भाषाओं का उपयोग करने में समर्थ हो पाती और सरकार के खर्च की भी बचत होती। यह कार्य कब तक करवा दिया जाएगा?

(9)

"युनिकोड में हिन्दी तथा भारतीय भाषाओं के मूल व्यंजनों, संयुक्ताक्षरों की एनकोडिंग नहीं हुई है, जिसके कारण इन भाषाओं की प्रोसेसिंग "रेण्डरिंग इंजिन" आदि तीन-स्तरीय जटिल अलगोरिद्म के तहत होती है और ‘पेजमेकर’, ‘कोरल ड्रा’ आदि डी.टी.पी. पैकेज के पुराने वर्सन में युनिकोडित भारतीय फोंट्स का प्रयोग नहीं हो पाता। इनके नए वर्सन काफी मंहगे होने के कारण छोटे प्रेस प्रयोग नहीं कर पाते। युनिकोडित हिन्दी फोंट से पी.डी.एफ. बनी फाइल को वापस पाठ (text) रूप में सही रूप में बदलना भी संभव नहीं हो पाता। और समाचार-पत्रों/पत्रिकाओं को अपने मुद्रित अंक के लिए पुराने 8-बिट फोंट में पाठ संसाधित करना पड़ता है तथा वेबसाइट पर ई-पत्र-पत्रिका के लिए युनिकोडित 16-बिट फोंट में संसाधित करने की दोहरी प्रक्रिया अपनानी पड़ती है। जिससे हिन्दी तथा भारतीय भाषाओं का प्रयोग कठिन बन जाता है। युनिकोड में मूल व्यंजनों तथा संयुक्ताक्षरों की एनकोडिंग करवाने या इण्डिक कम्प्यूटिंग को एकस्तरीय और सरल बनाने के लिए क्या प्रयास किए जा रहे हैं।

(10)

भारत को अंग्रेजों की दासता से स्वाधीन हुए 68 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन अभी तक अंग्रेजी की दासता से स्वाधीन नहीं हो पाया। इसका एक कारण है शिक्षा में हिन्दी की नहीं अंग्रेजी की अनिवार्यता है। शिक्षा भले ही मौलिक अधिकार के अन्तर्गत आती है, लेकिन शिक्षा व्यवस्था प्रान्तीय सरकारों के अधीन हो रही है। यदि शिक्षा प्रणाली को केन्द्र सरकार अपने हाथ में लेती और त्रिभाषी(प्रान्तीय भाषा – हिन्दी – अंग्रेजी) फार्मूले को भी सही रीति लागू करे तो पहली से 10वीं कक्षा तक सिर्फ 10 वर्ष में अधिकांश जनता हिन्दी में निपुण हो जाती।
यदि गाँव-गाँव में केन्द्रीय विद्यालय, हर प्रखण्ड/जिला स्तर पर केन्द्रीय महाविद्यालय और हर प्रान्त में केन्द्रीय विश्वविद्यालय चालू कर दिए जाएँ तो समग्र भारत में हिन्दी और भारतीय भाषाओं का समुचित विकास और प्रयोग सुनिश्चत हो सकता है। इस दिशा में क्या कदम उठाए जा रहे हैं और इसे कब तक लागू किया जा सकेगा?

उल्लेखनीय है कि 9वें विश्व हिन्दी सम्मेलन के विद्वानों से 10 यक्ष प्रश्न पूछे गए थे, जिनका उत्तर अभी तक अपेक्षित है।

n  हरिराम

24 Sept 2012

9वें विश्व हिन्दी सम्मेलन के विद्वानों से 10 यक्ष प्रश्न

9वें विश्व हिन्दी सम्मेलन के प्रतिभागियों से 10 यक्ष प्रश्न

निम्न कुछ तथ्यपरक व चुनौतीपूर्ण प्रश्न 9वें विश्व हिन्दी सम्मेलन में पधारे विद्वानों से करते हुए इनका उत्तर एवं समाधान मांगा जाना चाहिए...
(1)
हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बनाने के लिए कई वर्षों से आवाज उठती आ रही है, कहा जाता है कि इसमें कई सौ करोड़ का खर्चा आएगा...
बिजली व पानी की तरह भाषा/राष्ट्रभाषा/राजभाषा भी एक इन्फ्रास्ट्रक्चर (आनुषंगिक सुविधा) होती है....
अतः चाहे कितना भी खर्च हो, भारत सरकार को इसकी व्यवस्था के लिए प्राथमिकता देनी चाहिए।

(2)
-- हिन्दी की तकनीकी रूप से जटिल (Complex) मानी गई है, इसे सरल बनाने के लिए क्या उपाय किए जा रहे हैं?

-- कम्प्यूटरीकरण के बाद से हिन्दी का आम प्रयोग काफी कम होता जा रहा है...
-- -- हिन्दी का सर्वाधिक प्रयोग डाकघरों (post offices) में होता था, विशेषकर हिन्दी में पते लिखे पत्र की रजिस्ट्री एवं स्पीड पोस्ट की रसीद अधिकांश डाकघरों में हिन्दी में ही दी जाती थी तथा वितरण हेतु सूची आदि हिन्दी में ही बनाई जाती थी, लेकिन जबसे रजिस्ट्री और स्पीड पोस्ट कम्प्यूटरीकृत हो गए, रसीद कम्प्यूटर से दी जाने लगी, तब से लिफाफों पर भले ही पता हिन्दी (या अन्य भाषा) में लिखा हो, अधिकांश डाकघरों में बुकिंग क्लर्क डैटाबेस में अंग्रेजी में लिप्यन्तरण करके ही कम्प्यूटर में एण्ट्री कर पाता है, रसीद अंग्रेजी में ही दी जाने लगी है, डेलिवरी हेतु सूची अंग्रेजी में प्रिंट होती है।
-- -- अंग्रेजी लिप्यन्तरण के दौरान पता गलत भी हो जाता है और रजिस्टर्ड पत्र या स्पीड पोस्ट के पत्र गंतव्य स्थान तक कभी नहीं पहुँच पाते या काफी विलम्ब से पहुँचते हैं।
-- -- अतः मजबूर होकर लोग लिफाफों पर पता अंग्रेजी में ही लिखने लगे है।
डाकघरों में मूलतः हिन्दी में कम्प्यूटर में डैटा प्रविष्टि के लिए क्या उपाय किए जा रहे हैं?

(3)
-- -- रेलवे रिजर्वेशन की पर्चियाँ त्रिभाषी रूप में छपी होती हैं, कोई व्यक्ति यदि पर्ची हिन्दी (या अन्य भारतीय भाषा) में भरके देता है, तो भी बुकिंग क्लर्क कम्प्यूटर डैटाबेस में अंग्रेजी में ही एण्ट्री कर पाता है। टिकट भले ही द्विभाषी रूप में मुद्रित मिल जाती है, लेकिन उसमें गाड़ी व स्टेशन आदि का नाम ही हिन्दी में मुद्रित मिलते हैं, जो कि पहले से कम्प्यूटर के डैटा में स्टोर होते हैं, रिजर्वेशन चार्ट में नाम भले ही द्विभाषी मुद्रित मिलता है, लेकिन "नेमट्रांस" नामक सॉफ्टवेयर के माध्यम से लिप्यन्तरित होने के कारण हिन्दी में नाम गलत-सलत छपे होते हैं। मूलतः हिन्दी में भी डैटा एण्ट्री हो, डैटाबेस प्रोग्राम हो, इसके लिए व्यवस्थाएँ क्या की जा रही है?

(4)
-- -- मोबाईल फोन आज लगभग सभी के पास है, सस्ते स्मार्टफोन में भी हिन्दी में एसएमएस/इंटरनेट/ईमेल की सुविधा होती है, लेकिन अधिकांश लोग हिन्दी भाषा के सन्देश भी लेटिन/रोमन लिपि में लिखकर एसएमएस आदि करते हैं। क्योंकि हिन्दी में एण्ट्री कठिन होती है... और फिर हिन्दी में एक वर्ण/स्ट्रोक तीन बाईट का स्थान घेरता है। यदि किसी एक प्लान में अंग्रेजी में 150 अक्षरों के एक सन्देश के 50 पैसे लगते हैं, तो हिन्दी में 150 अक्षरों का एक सन्देश भेजने पर वह 450 बाईट्स का स्थान घेरने के कारण तीन सन्देशों में बँटकर पहुँचता है और तीन गुने पैसे लगते हैं... क्योंकि हिन्दी (अन्य भारतीय भाषा) के सन्देश UTF8 encoding में ही वेब में भण्डारित/प्रसारित होते हैं।

हिन्दी सन्देशों को सस्ता बनाने के लिए क्या उपाय किए जा रहे हैं?

(5)
-- -- अंग्रेजी शब्दकोश में अकारादि क्रम में शब्द ढूँढना आम जनता के लिेए सरल है, हम सभी भी अंग्रेजी-हिन्दी शब्दकोश में जल्दी से इच्छित शब्द खोज लेते हैं,
-- -- लेकिन हमें यदि हिन्दी-अंग्रेजी शब्दकोश में कोई शब्द खोजना हो तो दिमाग को काफी परिश्रम करना पड़ता है और समय ज्यादा लगता है, आम जनता/हिन्दीतर भाषी लोगों को तो काफी तकलीफ होती है। हिन्दी संयुक्ताक्षर/पूर्णाक्षर को पहले मन ही मन वर्णों में विभाजित करना पड़ता है, फिर अकारादि क्रम में सजाकर तलाशना पड़ता है...
विभिन्न डैटाबेस देवनागरी के विभिन्न sorting order का उपयोग करते हैं।

हिन्दी (देवनागरी) को अकारादि क्रम युनिकोड में मानकीकृत करने तथा सभी के उपयोग के लिए उपलब्ध कराने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं?

(6)
-- -- चाहे ऑन लाइन आयकर रिटर्न फार्म भरना हो, चाहे किसी भी वेबसाइट में कोई फार्म ऑनलाइन भरना हो, अधिकांशतः अंग्रेजी में ही भरना पड़ता है...
-- -- Sybase, powerbuilder आदि डैटाबेस अभी तक हिन्दी युनिकोड का समर्थन नहीं दे पाते। MS SQL Server में भी हिन्दी में ऑनलाइन डैटाबेस में काफी समस्याएँ आती हैं... अतः मजबूरन् सभी बड़े संस्थान अपने वित्तीय संसाधन, Accounting, production, marketing, tendering, purchasing आदि के सारे डैटाबेस अंग्रेजी में ही कम्प्यूटरीकृत कर पाते हैं। जो संस्थान पहले हाथ से लिखे हुए हिसाब के खातों में हिन्दी में लिखते थे। किन्तु कम्प्यूटरीकरण होने के बाद से वे अंग्रेजी में ही करने लगे हैं।

हिन्दी (देवनागरी) में भी ऑनलाइन फार्म आदि पेश करने के लिए उपयुक्त डैटाबेस उपलब्ध कराने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं?

(7)
सन् 2000 से कम्प्यूटर आपरेटिंग सीस्टम्स स्तर पर हिन्दी का समर्थन इन-बिल्ट उपलब्ध हो जाने के बाद आज 12 वर्ष बीत जाने के बाद भी अभी तक अधिकांश जनता/उपयोक्ता इससे अनभिज्ञ है। आम जनता को जानकारी देने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं?

(8)
भारत IT से लगभग 20% आय करता है, देश में हजारों/लाखों IITs या प्राईवेट तकनीकी संस्थान हैं, अनेक कम्प्यूटर शिक्षण संस्थान हैं, अनेक कम्प्टूर संबंधित पाठ्यक्रम प्रचलित हैं, लेकिन किसी भी पाठ्यक्रम में हिन्दी (या अन्य भारतीय भाषा) में कैसे पाठ/डैटा संसाधित किया जाए? ISCII codes, Unicode Indic क्या हैं? हिन्दी का रेण्डरिंग इंजन कैसे कार्य करता है? 16 bit Open Type font और 8 bit TTF font क्या हैं, इनमें हिन्दी व अन्य भारतीय भाषाएँ कैसे संसाधित होती हैं? ऐसी जानकारी देनेवाला कोई एक भी पाठ किसी भी कम्प्यूटर पाठ्यक्रम के विषय में शामिल नहीं है। ऐसे पाठ्यक्रम के विषय अनिवार्य रूप से हरेक computer courses में शामिल किए जाने चाहिए। हालांकि केन्द्रीय विद्यालयों के लिए CBSE के पाठ्यक्रम में हिन्दी कम्प्यूटर के कुछ पाठ बनाए गए हैं, पर यह सभी स्कूलों/कालेजों/शिक्षण संस्थानों अनिवार्य रूप से लागू होना चाहिए।

इस्की और युनिकोड(इण्डिक) पाठ्यक्रम अनिवार्य करने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं?

(9)
हिन्दी की परिशोधित मानक वर्तनी के आधार पर समग्र भारतवर्ष में पहली कक्षा की हिन्दी "वर्णमाला" की पुस्तक का संशोधन होना चाहिए। कम्प्यूटरीकरण व डैटाबेस की "वर्णात्मक" अकारादि क्रम विन्यास की जरूरत के अनुसार पहली कक्षा की "वर्णमाला" पुस्तिका में संशोधन किया जाना चाहिए। सभी हिन्दी शिक्षकों के लिए अनिवार्य रूप से तत्संबंधी प्रशिक्षण प्रदान किए जाने चाहिए।

इसके लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं?

(10)

अभी तक हिन्दी की मानक वर्तनी के अनुसार युनिकोड आधारित कोई भी वर्तनी संशोधक प्रोग्राम/सुविधा वाला साफ्टवेयर आम जनता के उपयोग के लिए निःशुल्क डाउनलोड व उपयोग हेतु उपलब्ध नहीं कराया जा सका है। जिसके कारण हिन्दी में अनेक अशुद्धियाँ के प्रयोग पाए जाते हैं।


सके लिए क्या व्यवस्थाएँ की जा रही हैं?
       

15 May 2012

एडोबे ईनडिजाइन सीएस-6 में भारतीय लिपियों का समर्थन

Indic Support in InDesign CS6
एडोबे ईनडिजाइन सीएस-6 में भारतीय लिपियों का समर्थन

भारतीय प्रकाशन उद्योग के लिए खुशी की खबर है कि उनकी बहु-प्रतीक्षित आवश्यकता पूरी हो रही है। विश्व में सबसे लोकप्रिय प्री-प्रेस डिजाइन-पैकेज Adobe InDesign CS6 में भारतीय लिपियों के समर्थन की घोषणा की गई है।

इसके वर्ल्ड रेडी कम्पोजर (WRC) के द्वारा 10 भारतीय भाषाओं (हिन्दी, मराठी, गुजराती, तमिल, पंजाबी, बंगला, तेलगु, ओड़िआ, मलयालम एवं कन्नड़) में पाठ के सही रूप में शब्द-संयोजन को प्रकट करने का सामर्थ्य हासिल हो गया है।

देवनागरी फोंट समुदाय में Hunspell के माध्यम से वर्तनीशोधक (spell cheking) और शब्द-जोड़ी-विभाजक (Hyphenation) की सुविधा भी प्रदान कर दी गई है।

भारतीय लिपियों में काम करने की सुविधाओं को सुस्थापित या डिफॉल्ट रूप में सेट करने के लिए एक प्रोग्राम भी प्राथमिकताओं (Preferences) में दे दिया गया है। साथ ही इसमें अन्य सॉफ्टवेयरों में सम्पादित पाठ को आयात (Import) करने की सुविधा भी प्रदान की गई है।

यदि किसी फोंट में कोई विशेष संयुक्ताक्षर का ग्लीफ उपलब्ध न हो तो इसकी चेतावनी भी स्वचालित रूप से प्रकट हो जाती है।

हालांकि अभी फोटोशॉप और इल्यूस्ट्रेटर सीएस-6 (Photoshop & Illustrator CS6) आदि में युनिकोडित भारतीय लिपियों के समर्थन की कोई घोषणा नहीं हुई है।

एडोबे क्रीएटिव श्यूट मुख्यतः मीडिया, प्रकाशन और मनोरंजन उद्योग के पेशेवर महारथियों को ध्यान में रखकर बनाया गया है, जो मुख्यतः चार पैकेजों में उपलब्ध है- मास्टर कलेक्शन (रु. 1.56 लाख), डिजाइन एवं वेब प्रीमियम और प्रोडक्शन प्रीमियम (रु. 1.14 लाख) और डिजाइन स्टैण्डर्ड (रु. 78,288). ये उत्पाद इनके इन्स्टालेशन के बाद ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करने के बाद ही कार्यक्षम होने के शर्ताधीन होंगे।

ये मूल्य भारतीय छोटे प्रेस तथा अखबारों के लिए अत्यन्त भारी लग रहे हैं। फिर भी यह एक अच्छी खबर है भारतीय प्रकाशन उद्योग के लिए। युनिकोड में कार्य करना अधिकांश लोगों के लिए सरल हो जाएगा। विशेषकर अखबारों को दोहरा कार्य नहीं करना पड़ेगा- ऑनलाइन वेब संस्करण के लिए युनिकोड में और मुद्रित अखबार के लिए पुराने 8-बिट ASCII आधारित ttf फोंट में।

फोंट कनवर्टरों का बारम्बार उपयोग तथा तत्संबंधी समस्याओं का निराकरण काफी हद तक हो जाएगा।

एडोबे सीस्टम्स के दक्षिण एशिया के प्रबन्ध-निदेशक श्री उमंग बेदी ने पत्रकारों को बताया कि फिक्की-केपीएमजी की एक रिपोर्ट के अनुसार सन् 2016 तक भारतीय मीडिया तथा मनोरंजन उद्योग का कारोबार 1457 अरब रुपये तक पहुँचने की आशा है। अतः उन्हें अपने ऐसे उत्पादों की भारतीय बाजार में बिक्री से हजारों करोड़ रुपये का लाभ होने की उम्मीद है।

सन्दर्भ : http://www.thehindu.com/sci-tech/article3349487.ece

19 Jan 2012

Speech to text SMS

Speech to text SMS
सिर्फ बोल कर भेज सकेंगे लिखित एसएमएस


भारत के आंध्र प्रदेश में हैदराबाद स्थित अंतरराष्ट्रीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान [आईआईआईटी] (http://iiit.net) एक ऐसी मोबाइल प्रौद्योगिकी विकसित करने पर काम कर रहा है जो बोले गए शब्दों को 'इनपुट' के तौर पर ग्रहण करेगी और इसे भारतीय भाषाओं के लिखित पाठ में तब्दील कर देगी जिसे एसएमएस के तौर पर भेजा जा सकेगा।

आईआईआईटी के निदेशक श्री राजीव संगल ने बताया कि परियोजना अगले दो साल में तैयार हो जाएगी और इसके लिए सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय वित्तीय सहायता मुहैया करा रहा है।

श्री संगल ने कहा कि अगर कोई पढ़ना या लिखना नहीं जानता है तो जो संदेश वह किसी अन्य व्यक्ति के पास भेजना चाहता है उसे वह नई प्रौद्योगिकी की मदद से फोन पर या एसएमएस पर बोल कर लिखवा सकेगा। इसके लिए पहले उसे अपनी बात बोलनी होगी और मोबाइल फोन उसे लिखित पाठ में तब्दील कर संदेश के तौर पर भेज देगा।

उन्होंने बताया कि इस परियोजना पर सात अन्य संस्थान काम कर रहे हैं। संगल ने कहा कि यह प्रौद्योगिकी मोबाइल फोन में उपयोगी रहेगी जिनमें छोटे स्क्रीन और छोटे कीबोर्ड होते हैं जिसकी वजह से अक्षर टाइप करने में दिक्कत होती है।

संकाय के एक वरिष्ठ सदस्य ने कहा कि आईआईआईटी की स्पीच लैब का उद्देश्य ऐसी प्रणालियों का विकास करना है जो बोले गए शब्दों का लिप्यंतरण कर सकें, भारतीय भाषाओं के लिए सही ध्वनि एवं उच्चारण उत्पन्न कर सकें, शरीर के चिह्नों जैसे उंगली के निशानों अथवा आखों की पुतलियों द्वारा व्यक्ति विशेष की पहचान कर सकें और वाक शैली में संवाद स्पष्ट कर सकें।

श्री संगल ने संस्थान की एक और परियोजना के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि अनुसंधान दल मोबाइल फोनों के लिए लिखित शब्दों को पढ़ने वाली एक प्रणाली 'ऑप्टिकल कैरेक्टर रीडर' भी विकसित करने के लिए प्रयासरत है।

उन्होंने बताया कि ऑप्टिकल कैरेक्टर रीडर स्क्रीन पर लिखे शब्दों को हस्तलिपि पहचानने वाले एक उपकरण की मदद से पढ़ेगा। हम शलाका की मदद से मोबाइल फोन पर किसी भी भाषा में लिख सकते हैं। सेल फोन इसे पहचानेगा और उसके अनुसार ऑप्टिकल कैरेक्टर रीडर आगे का कदम उठाएगा।

संगल ने बताया कि संस्थान ने एक अंतर्राष्ट्रीय मोबाइल निर्माता के लिए एक ऐसा सॉफ्टवेयर विकसित किया है जो हिंदी में लिखे एसएमएस पढ़ सकेगा। बहरहाल, उन्होंने मोबाइल फोन निर्माता का नाम नहीं बताया। विश्लेषकों का कहना है कि यह प्रौद्योगिकी ग्रामीण भारतीय बाजारों के विस्तार के लिए उपयोगी साबित होगी जहा मोबाइल फोन निरक्षरता की वजह से अभी भी अपनी गहरी पैठ नहीं बना पाए हैं।

सौजन्य :   दैनिक जागरण, 19 जनवरी, 2012 http://www.jagran.com/news/national-technology-for-converting-speech-into-text-msg-8782895.html>

तथा
सन्मार्ग, 19 जनवरी, 2012, पृ.11

सन्दर्भ हेतु देखें क्या कम्प्यूटर क्रान्ति लायेगी हिन्दी क्रान्ति?

उल्लेखनीय है कि हिन्दी तथा ब्राह्मी लिपि आधारित अन्य भारतीय भाषाओँ की लिपियाँ ध्वनिविज्ञान की कसौटी पर खरी उतरती हैं। इनमें जैसे बोला जाता है वैसे ही लिखा जाता है। इसके विपरीत अंग्रेजी में एक शब्द का उच्चारण कुछ और होता है तो जिन अक्षरों को मिलकर वह शब्द बना है उन अक्षरों के एक एक कर उच्चारण किया जाए तो कुछ और ही होता है।

अतः बोलकर लिखित पाठ में बदलने के श्रुतलेखन सॉफ्टवेयर अंग्रेजी भाषा (लेटिन लिपि) में सही काम नहीं करते, 50 से 70 प्रतिशत तक ही सही शब्द प्रकट कर पाते हैं। बाकी को फिर से मैनुअल सम्पादन/सुधार करना पड़ता है। जबकि हिन्दी व भारतीय भाषाओं में श्रुतलेखन सॉफ्टवेयर 90 से 98 प्रतिशत तक शुद्ध पाठ प्रदान कर पाते हैं।

साथ ही अंग्रेजी में बोलकर पाठ प्रविष्टि करके लिखित पाठ में बदलनेवाले श्रुतलेखन सॉफ्टवेयर की निर्माण विधि शब्दकोश में शब्दों की उच्चारण की गई ध्वनि-क्लिप के डैटाबेस फील्ड को वर्तनी (स्पेलिंग) के लिखित पाठ में बदलने की पद्धति पर आधारित होती है, इसलिए ऐसे सॉफ्टवेयर भारी-भारीकम तथा अधिक हार्डडिस्क स्पेस और अधिक मेमोरी घेरते हैं।

इसके विपरीत भारतीय भाषाओं के श्रुतलेखन सॉफ्टवेयर केवल मूल वर्णों के ध्वनि-अणुओं को लिपि के मूल वर्णों में बदलने की सूक्ष्म तकनीक पर आधारित होते हैं, इसलिए अत्यन्त कम भंडारण स्पेस एवं अति कम मेमोरी घेरते हैं और मोबाईल फोन पर भी चल पाने में सफल होते हैं।

आशा है कि इन सॉफ्टवेयरों के बाजार में आने पर भारतीय भाषाओं के प्रयोग में क्रान्ति दिखाई देगी।