सूरज पर दाग - बढ़ती गर्मी का कारण
चाँद पर दाग हैं, सभी इसे देख लेते हैं। चाँद पर दाग विषय पर अनेक कवियों की कलम चल चुकी है। दाग तो सूर्य पर भी होते हैं। चाँद के दाग तो सभी देख लेते हैं, किन्तु सूरज के दाग कौन देखे? जो सूरज के दाग देखने जाएगा, उसकी आँखें फूट सकती है उसके प्रखर व अनन्त प्रकाश से। शायद इसीलिए कहा गया है कि "बड़ों की गलतियाँ नहीं देखी जाती।"
आजतक दूरदर्शन चैनल पर एक समाचार में बताया गया कि अब वैज्ञानिकों ने आधुनिक वेधशालाओं में देखने पर पाया है कि आजकल सूरज पर दो बड़े काले धब्बे दिखाई दे रहे हैं। चेतावनी भी दी गई है कोई इन धब्बों के लिए सूरज की ओर झाँकने का भी प्रयास नहीं करे। सूरज की ओर नंगी आखों से कदापि नहीं देखना चाहिए। उगते हुए बाल-सूर्य को भले की कुछ मिनट नंगी आँखों से देखा जा सकता है। किन्तु जब सूरज की लालिमा कम होने लगे तो और सूरज की ओर निहारना नहीं चाहिए।
वैज्ञानिकगण आजकल सूरज पर दिखाई दे रहे इन काले धब्बों को पृथ्वी की गर्मी बढ़ने (ग्लोबल वार्मिंग) का कारण भी मान रहे हैं। आँकड़ों के आधार पर वे बताते हैं कि जिस वर्ष सूरज पर कोई धब्बा नहीं दिखाई दिया, उस वर्ष बहुत कड़ाके की ठण्ड पड़ी थी। सूरज पर निरन्तर होते रहनेवाले परमाणुओं के विखण्डन तथा संलयन की प्रक्रिया के कारण अनन्त ऊर्जा उत्पन्न होती है और ये काले धब्बे उसके ईँधन भण्डार भो हो सकते हैं या कोई बड़े गड्ढे भी हो सकते हैं। सूर्य से जो प्रकाश धरती पर पहुँचता है, उसे पृथ्वी के चारो ओर स्थित ओजोन आयाम छानकर धरती तक पहुँचाता है। हानिकारक तत्व छिटक कर पृथ्वी के दोनों ध्रुवों की ओर विसर्जित हो जाते हैं।
जिस प्रकार सूर्यग्रहण के वक्त सूर्य का प्रकाश हानिकारक माना जाता है। उसी प्रकार काले धब्बों के प्रकट होने के दौरान भी सूर्य का प्रकाश हानिकारक माना जाता है। इसे समझाने का सरल तरीका निम्नवत् है:
जैसे- लकड़ी के चूल्हे पर जब रोटी पकाई जाती है तो रोटी को पहले तवे पर आधा सेक कर उतार लिया जाता है, और फिर रोटी को दहकते कोयले/अंगारों पर रखकर उलट-पलट कर सेंका जाता है। वह रोटी स्वादिष्ट और स्वास्थ्यकर होती है। यदि रोटी को लकड़ी जलने पर पैदा होनेवाली आग की लपटों में सेंका जाए तो रोटी कड़ुई(खारी) हो जाती है तथा कुछ जहरीली भी हो सकती है, कुछ काली भी पड़ सकती है। इसी प्रकार सूर्यग्रहण के वक्त सूर्य का मुख्य (अँगारों जैसा) प्रकाश छिप जाता है, बाहरी प्रकाश जो लपटों जैसा होता है, वही हम तक पहुँचता है, जिसमें वैसे ही कुछ जहरीले तत्व पाए जाते हैं। इसलिए सूर्यग्रहण के समय पेट खाली रखने की सलाह दी जाती है।
अतः काले धब्बे दिखाई पड़ने के दौरान सूर्य का प्रकाश कुछ कटु होता है जो आर्द्रता, गर्मी तथा उमस बढ़ाने वाला होता है। इस दौरान कई स्थानों पर भयंकर चक्रवात, ओलावृष्टि तथा अम्लवर्षा होने के भी उदाहरण मौसम विभाग के आँकड़ों में पाए जाते हैं।
यदि ग्लोबल वार्मिंग इन्हीं सौर कारणों से बढ़ रही है तो मानव के वश में क्या है? मानव इसका क्या उपाय कर सकता है?
11 Jun 2007
सूरज पर दाग - बढ़ती गर्मी का कारण
Posted by हरिराम at 18:37
Labels: ग्लोबल वार्मिंग, पर्यावरण
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2 comments:
सूरज पर धब्बे एक ग्यारह साल की अवधि में घटते बढ़ते रहते हैं। इससे सूरज की क्रिया में बदलाव आता है और माना जाता है कि जब सूरज अधिक क्रियात्मक होता है तो उसका तापमान बढ़ जाता है। और इससे धरती का तापमान भी बढ़ना चाहिए।
इस थ्योरी में बस एक गड़बड़ है, इसके अनुसार 2004 के बाद से सूरज की क्रिया कम होनी चाहिए थी और पृथ्वी पर तापमान कम होना चाहिए था और हम उल्टा देख रहे हैं।
राग
सूर्य-ढाल रूपी उपग्रह अन्तरिक्ष में स्थापित करने का विचार बहुत उपयोगी लगा। लेकिन इसे दोगुना उपयोगी बनाने का एक सुझाव भी दे रही हूँ। सर्दियों के दिनों में इस ढाल-उपग्रह को इस प्रकार उलट कर स्थापित किया जा सकता है कि अधिकाधिक सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी की ओर परावर्तित कर सके, ताकि कम्पकम्पाती ठण्ड से कुछ राहत भी मिल सके।
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