18 Aug 2007

लड़का या लड़की मनचाही सन्तान प्राप्ति का सहज उपाय

लड़का या लड़की मनचाही सन्तान प्राप्ति का सहज उपाय
Vedic way for Male Female childbirth



पीएनएन में मीनाक्षी अरोड़ा जी ने "जेंटर मेंटर किट: बेटी तुम्हें मारने का एक और नया तरीका" नामक लेख में कन्या भ्रूण हत्या के मामलों का कटु-सत्य प्रकाशित किया है। देश भर में कन्या भ्रूण-हत्याओं के मामलों के हृदय-विदारक समाचार मिलते रहते हैं। हाल ही में उड़ीसा के नयागढ़ के एक प्राईवेट नर्सिंग होम के सेफ्टी टैंक से अनेक भ्रूण पाए जाने की घटना के बाद तो समग्र भारत दहल गया है। क्या माता-पिता "कंस" बन गए हैं? क्या यह कार्य करनेवाले डॉक्टर "यमराज" हैं? सरकार ने भी "मेडकली टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी" (MTP) को कैसे कानूनी जामा पहना दिया है? ये ज्वलन्त प्रश्न यह स्पष्ट संकेत देते हैं कि "विनाश काले विपरीत बुद्धि"।

जबकि हमारे वेद-शास्त्रों में पुत्र या पुत्री (लड़का या लड़की), मनचाही सन्तान प्राप्ति करने के सरल व सहज उपाय वर्णित है और अनेक शताब्दियों से विद्वत्‌जनों द्वारा इसका अनुपालन करके इच्छानुरूप सन्तान प्राप्ति की जाती रही है।

एक प्रसिद्ध आयुर्वेदिक वैद्य जी ने यह जानकारी दी थी कि यदि तिथि विशेष को गर्भाधान (Conception) किया जाए तो अवश्य ही पुत्र सन्तान का जन्म होता है। तिथि =
नोट : उक्त तिथि विशेष की जानकारी को सुश्री घुघूती बासूती जी टिप्पणी के अनुसरण में जनहित में गोपनीय कर दिया गया है, जिसमें उन्होंने यह आशंका व्यक्त की है कि इतना सरल उपाय जानकर लोग का इसका गलत उपयोग करेंगे और सिर्फ पुत्र सन्तानें पैदा होने लगेंगी, धरा से नारी का अस्तित्व लोप हो सकता है, नर-नारी का संतुलन बिगड़ सकता है। सच है कि ऐसा गूढ़ ज्ञान हर व्यक्ति को नहीं देना चाहिए। कुपात्र को दान देना भी पाप होता है। अतः यह विधि उसी दम्पत्ति को बतलाई जा सकती है, जिसके पहले से कम से कम एक कन्या सन्तान हो चुकी हो और कोई कोई पुत्र नहीं हो।

इस सहज उपाय को अनेक दम्पत्ति आजमा चुके हैं तथा लगभग शत-प्रतिशत मामलों में सफलता मिली।

लेकिन इसके लिए आवश्यक है कि सन्तान की इच्छुक महिला के ऋतुकाल (Menses) के बाद 14वें दिन से 21 वें दिन के अन्दर वह तिथि विशेष हो। तीन-चार महीने पहले से बाजार में उपलब्ध सामान्य औषधियों का सहारा लेकर मासिक-धर्म को इस प्रकार सन्तुलित किया जा सकता है। इसके साथ ही पिता बनने के इच्छुक पुरुष को लगभग महीने भर संयम बरतना आवश्यक होता है, ताकि गर्भाधान के दौरान उसके शुक्राणु पर्याप्त संख्या में उपलब्ध हों।

उक्त वैद्य जी के अनुसार प्राचीन भारतीय वैदिक ज्योतिष शास्त्रों में तो यहाँ तक वर्णन है कि किस तिथि, वार, नक्षत्र, मुहूर्त आदि में गर्भाधान करने से किस रूप, गुण व चरित्र की सन्तान का जन्म होता है।

भले ही यह बात आधुनिक डॉक्टरों, वैज्ञानिकों, नास्तिकों को ठीक न लगे, लेकिन इस सरल उपाय को आजमाने में न तो कोई खर्चा करना पड़ता है और न ही कोई विशेष व्रत, उपवास या तपस्या। न ही किसी प्रकार का नुकसान है। अतः सन्तान के इच्छुक दम्पत्तियों के लिए यह विधि सर्वोत्तम है।

कम से कम यह सरल उपाय असंयमित, अनियन्त्रित गर्भाधान करके फिर गर्भपात, भ्रूणहत्या करके ब्रह्मपापी बनने और जीवनभर अन्दर ही अन्दर पश्चात्ताप करने से तो बेहतर है। विशेषकर गर्भपात करवानेवाली महिला को जिस शारीरिक और मानसिक कष्ट और ग्लानि से गुजरना पड़ता है, उससे से वह बच ही सकती है।

13 comments:

ललित said...

अद्भुत ज्ञान प्रदान किया है। पर सारी समस्या की जड़ तो यह असंयम ही है। यदि लोग संयम अपनाते तो वर्तमान विश्व में उपजी समस्याओं का 90 प्रतिशत उपजता ही नहीं।

ghughutibasuti said...

बहुत बढ़िया बात बताई आपने । अपने भारत में यदि इस सरल सस्ते व टिकाऊ उपाय का उपयोग होने लगे तो स्त्री जाति तो लगभग समाप्त ही हो जायेगी । माना मुझ जैसे कुछ पागल फिर भी पुत्रियों को जन्म देंगे तब भी सन्तुलन बुरी तरह से बिगड़ जायेगा । ऐसे में वेदों में यह भी बताया होगा कि कैसे पुरुष मोहे पुरुष के रूपा द्वारा काम चलाया जा सकता है । और शायद सन्तान उत्पत्ति के लिये मछली आदि व स्वेद कणों से काम चलाया जा सकता है ।
घुघूती बासूती

हरिराम said...

घुघूती जी, आपकी चिन्ता आम नारी स्वभाव के अनुसार वाजिब हो सकती है। किन्तु यह एक कटु सत्य है अधिकांश भारतीय महिलाएँ ही पुत्र सन्तान की ज्यादा कामना करती है, जबकि पुरुष कन्या सन्तान की चाह रखते हैं। विशेषकर परिवार में वृद्ध महिलाएँ ही बेटों को अधिक महत्व देती दिखाई देती हैं।

ePandit said...

पुत्र जन्म की इच्छा रखना पाप नहीं है, पाप है अजन्मे बच्चे को मारना, घुघूती जी की जानकारी के लिए बता दूँ कि वेदों-शास्त्रों में गर्भस्थ शिशु की हत्या को कई ब्रह्महत्याओं के समान बताया गया है।

पुत्र-पुत्री दोनों का अपना महत्व है। पुत्र पिंडदान द्वारा पितरों का उद्धार करता है, दूसरी तरफ कन्यादान महान पुण्य है। व्यावहारिक रुप से भी जीवन में दोनों का अपना स्थान है। एक के मुकाबले दूसरे को कमतर नहीं आँक सकते।

हरिराम जी की बात से मैं सहमत हूँ, बहुत बार देखता हूँ पुत्री जन्म पर मै स्त्री को पुरुषों की बजाय कहीं अधिक दुःखी होते पाता हूँ। खासकर जन्मदात्री और उसकी सास को। कई बार इसके लिए सास द्वारा बहू का ताना दिया जाता है। कटु सत्य कह रहा हूँ, कोई मानना न चाहे तो अलग बात है। वैसे भी आजकल खुद को आधुनिकवादी दिखाने के लिए छद्म नारीवाद का भी फैशन है।

हमारे प्राचीन ग्रंथों में मनचाही संतान के लिए कई उपाय बताए गए हैं। और हाँ यहाँ मनचाही का अर्थ केवल लड़का ही नहीं है।

ghughutibasuti said...

हरीराम जी , मैं आपसे सहमत हूँ । पर वे ही वृद्ध महिलाएँ पुत्र वधू की कामना करती हैं । पर उनकी या तो पुत्र प्राप्ति की कामना पूरी हो सकती है या पुत्र वधू की । दोनों नहीं । या फिर शायद हमारा सपनों का भारतीय समाज इतनी उन्नति कर जाएगा कि पुत्र वधू की जगह पुत्र वर से ही काम चला लेगा ।
भविष्य की इस सुन्दर परिकल्पना पर कौन मोहित नहीं होगा !
घुघूती बासूती

हरिराम said...

घुघूती जी,
आपकी आशंका सही है, लोग भस्मासुर की तरह गूढ़ ज्ञान का गलत उपयोग कर सकते हैं, अतः तिथि-विशेष सम्बन्धी जानकारी गोपनीय कर दी है। कृपया फिर से यह लेख पढ़ें। आशा है, आपको अब सही लगेगा।

Rama said...

डा. रमा द्विवेदी said....

हरीराम जी,

मैं आपकी बात से सहमत नहीं हूं कि पुत्री के जन्म पर महिलाएं ही अधिक दुखी होती हैं इसका कारण यहां नहीं है इसके मूल में पारिवारिक मानसिक दबाव है। लड़की पैदा होने पर अक्सर महिला को ही दोषी माना जाता रहा है। शिक्षा के अभाव में आज भी यह प्रचलन है कि लड़की पैदा होने के लिए औरत ही दोषी है...अगर संयोग वश लगातार दो-तीन लड़की हो गई तो घर के लोगों के सामने उस महिला का सर हमेशा के लिए झुक जाता है क्यों कि हमारी सामाजिक व्यवस्था ही ऐसी है कि लड़की की परवरिश बहुत सतर्कतता और विवाह के समय कई कठिनाईयों का सामना (दहेज आदि) करना पड़ता है इसलिए ही अधिकतर लोग लड़की नहीं चाहते लेकिन समाज के स्वस्थ्य विकास के लिए यह कामना उचित नहीं है कि सिर्फ़ लड़का हो।दोनो का समान महत्व है..इसलिए किसी भी प्रकार के नुक्से तब ही ठीक है अगर किसी को पहली लड़की हो...लेकिन ये उपाय गर्भाधान से पहले के हो क्योंकि भ्रूण हत्या या जन्म लेने के बाद मार देना जघन्य अपराध है...और यह किसी भी स्थिति में नहीं होना चाहिए।

आपका लेख अपनी जगह सही है लेकिन इस प्रकार का ज्ञान उन के लिए ही है जो समझदार हों और इसका गलत प्रयोग न करें। वैसे ही भारत में कई ऐसे प्रान्त हैं जहां लड़कियां पैदा होते ही मार दी जाती है और संतुलन बिगड़ रहा है। स्वार्थी मनुष्य वैसे ही बहुत चालाक है जिसमें उसे कष्ट हो उससे बचने के उपाय वो येन-केन- प्रकारेण कर ही लेता है।अब पेट में मार देता है पहले जन्म के बाद मार देते थे..निश्चित ही यह काम कोई वृद्ध महिला ही करती थी लेकिन क्या सिर्फ़ यह वो अपनी मर्ज़ी से करती थी?? यदि इसे सही भी मान लिया जाए तो पुरुष जो अपने को शक्तिशाली मानता है...हर निर्णय वो खुद ही लेना चाहता है तब वो इस जघन्य अपराध को करने से रोकता क्यों नहीं?? वह कभी खुद अपना चेहरा सामने नहीं रखता लेकिन गर्भवती पत्नी को या सास बहू को इतना मानसिक त्रास देते हैं कि वह उनके सामने हार मान लेती है आखिर अपना जीवन हर किसी को प्यारा होता है। क्षमा चाहती हूं कुछ ज्यादा ही लिख गई क्यों कि इस विषय पर जितना लिखा जाए कम ही है पर यह आज सबसे भयंकर समस्या है...हम सभी बुद्धिजीवियों को इसके समाधान पर अवश्य ध्यान देना चाहिए..बस इतना ही ..शेष फिर कभी....

हरिराम said...

रमा जी, आपकी चिन्ता अपने स्थान पर सही थी। किन्तु सर्वदा भ्रमणशील कालचक्र अब ऐसे समय पर पहुँच चुका है कि महिलाओं का अनुपात पुरुषों की तुलना में काफी कम हो चुका है। अनेक लड़के कुँवारे बैठे हैं, जिन्हें कोई लड़की नहीं मिल रही है। अब लड़के लड़कीवालों की हर शर्तों को मानने, अपनी ओर से विवाह का सारा खर्चा उठाने और 'दहेज' उल्टा उन्हें देने के लिए तैयार हो रहे हैं। महिलाओं के लिए हर कहीं आरक्षण हो रहा है। उन्हें हर कहीं प्राथमिकता एवं सुविधाएँ मिल रही है। अब लड़की का जन्म सौभाग्य तथा साक्षात् लक्ष्मी का आना फिर से माना जाने लगा है। एक 'पार्षद' से लेकर 'राष्ट्रपति' तक महिलाओं का ही बोलबाला दिखाई दे रहा है। पुरुष वर्ग अब असहाय हौकर पीड़ित और दयनीय स्थिति में पहुँच रहा है।

Rama said...

डा. रमा द्विवेदी said...


हरीराम जी ,

मैं अभी भी आपसे सहमत नहीं हूं क्योंकि आज भी दहेज के अभाव में कितनी ही लड़कियां कुंवारी रह जाती हैं और अगर शादी हो भी गई तो दहेज के लिए जला कर मार दी जाती है या इतना टार्चर किया जाता है कि खुद आत्महत्या कर लेती हैं।
रह गई आरक्षण की बात कितनी महिलाओं को इसका फायदा मिल रहा है या मिलेगा क्योंकि पहले उन्हें शिक्षित होना है...दूसरी बात कि गिनी चुनी महिलाओं के पार्षद या राष्ट्रपति बन जाने से सब महिलाओं की स्थिति नहीं सुधर गई।वो दिन तो अभी बहुत दूर है जब लड़की के जन्म पर खुशियां मनाई जाएंगी लेकिन शुरूआत तो हुई है कुछ शिक्षित लोग लड़की-लड़का में भेद नहीं करते फिर भी सैकड़ों वर्ष लग जाएंगे और यह भी हो सकता है कि तब तक कालचक्र उल्टी दिशा में चल पड़े....गावों में जाकर देखिए औरतों की स्थिति कितनी खराब है...उनके स्वास्थ्य पर बहुत कम धयान दिया जाता है..वैसे हर बात के अपवाद भी होते हैं... संपूर्ण अवलोकन के पश्चात स्थिति बेहतर नहीं है....जिसका प्रमाण दिनप्रतिदिन की घटनाएं भी बताती हैं....शेष फिर कभी...

nonu said...

mere pas 2 ladkiya ab 1 ladka chata hoon

dahiya said...

mere pas 2 ladkiya ab 1 ladka chata hoon

हरिराम said...

@ dahiya...
@ monu...
कृपया अपना ईमेल पता लिखें

ruchi said...

aadarniya shri hariraam ji,
aapne apne lekh ka ant jis vaktavya se kiya he,"गर्भपात करवानेवाली महिला को जिस शारीरिक और मानसिक कष्ट और ग्लानि से गुजरना पड़ता है",main us sab ki bhuktabhogi hoon.ab ek baar fir mujh par dabaw dala jaa raha he ke main putra prapti ke liye punah garbhadharan karun. main fir se us naarkiya peeda se nahi gujarana chahti.krapya meri shayata karen!
kya main vah gopaniy tithi ko jaan sakti hoon?