Indirect Smoking is more dangerous
कई घटनाओं में देखा गया है कि जो व्यक्ति धूमपान का आदी है, उसे तो कुछ रोग नहीं होता, लेकिन उसकी पत्नी को कैन्सर हो जाता है। उसके आसपास रहने, उठने, बैठनेवालों को गम्भीर बीमारियाँ हो जाती हैं।
इसका कारण बताते हुए चिकित्सा वैज्ञानिकों ने बताया है कि जो व्यक्ति धूमपान करता है वह बीड़ी/सिगरेट/सिगार आदि में तम्बाकू के जलने पर उत्पन्न धुएँ में निकोटिन+ऑक्सीजन ही अपनी साँस से फेंफड़ों में भरता है। किन्तु वह जो धुँआ उगलता है, उसमें निकोटिन+कार्बन-डाई-ऑक्साइड होता है जो ज्यादा खतरनाक होता है, जो उसके आसपास रहनेवाले व्यक्तियों के फेंफड़ों, श्वसन नली, तथा पेट में जाकर अनेक गम्भीर बीमारियाँ पैद करता है। अतः इस प्रकार परोक्ष (indirect) धूमपान ज्यादा खतरनाक होता है।
धूमपान के आदी व्यक्ति में तो निकोटीन को हजम करने या सहन करने की शक्ति आ जाती है। किन्तु धूमपान न करनेवाले व्यक्तियों में उस धूम को अनचाहे ग्रहण करने पर असह्य वेदना होती है। जो शारीरिक अवयवों पर ही नहीं, बल्कि मानसिक तथा मस्तिष्क की ग्रन्थियों पर खतरनाक स्तर का प्रभाव डालती है।
देखा जाता है कि किसी कार्यालय में, एयरकण्डीशण्ड कमरे में, सार्वजनिक स्थल पर धूमपान करनेवाले व्यक्ति को लोग रोकने या मना करने का साहस नहीं करते और अनचाहे ही भारी मात्रा में जहर अपने अन्दर सोखते रहते हैं।
सावधान! यह आपके जीवन का प्रश्न है: अतः ऐसे धूमपान-कारियों को तत्काल रोकने का आपका जन्मसिद्ध अधिकार है। सार्वजनिक स्थलों पर, रेलगाड़ी में, कार्यालयों में धूमपान करने पर भारतीय दण्डविधान की कई धाराओं के अन्तर्गत मामले दायर किए जा सकते हैं। उन्हें पुलिस द्वारा पकड़वाया जा सकता है। अतः ऐसे लोगों पर तत्काल कार्यवाही आवश्यक है।
पर्यावरण-संरक्षण संस्थाओं द्वारा मांग की जाने लगी है कि जिस प्रकार मयखाने, मधुशालाएँ, बीयर-बार. डान्स-बार आदि होती हैं, उसी प्रकार विभिन्न बाजारों में, रेलगाड़ियों, हवाई-अड्डों पर धूमपान के लिए भी विशेष कक्ष में धूमपान-बार (Smoke Bar) खोली जानी चाहिए। ऐसे कक्ष बन्द होने चाहिए। ताकि उनका धूम बेकार बाहर निकल कर नष्ट न होने पाए और अधिक समय तक कक्ष में ही मौजूद रहे। ताकि जिस धूमपान के आदी व्यक्ति के पास यदि सिगरेट आदि खरीदने के पैसे नहीं हो तो वह भी मुफ्त में उस कक्ष कुछ समय रुककर वहाँ मौजूद धूम को ग्रहण करके पर्याप्त आनन्द प्राप्त कर सके। कई बाजारों में ऐसे Smoke Bar खुल भी गए हैं।
इसलिए पर्यावरण सुरक्षा तथा आम जनता के स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए निविदेन है कि ऐसे स्मोक बार अधिकाधिक स्थलों में खुलवाने हेतु सभी अपना यथासम्भव जोर लगाएँ।
इसी सन्दर्भ में एक श्लोगान/नारा निम्नवत् है:
पान खाओ तो मीठा पान खाओ, पीक निगल लो,
आपको जहाँ तहाँ, थूकने का कोई अधिकार नहीं।
बीड़ी, सिगरेट पीओ शौक से, पर धुआँ निगल डालो,
जहाँ-तहाँ जहर उगलने का तुम्हें कोई अधिकार नहीं॥
(सबसे बड़ा पाप - वायु प्रदूषण से)
9 comments:
आपका कहना बिल्कुल सही है हरिरामजी और मैं अपने कॉफे में या कॉफे के आसपास किसी को ध्रूमपान नहीं करने देता।
मुझे भी धुंआ बिल्कुल सहन नहीं होता; जब गाँव जाता हूँ तो बस में कई बार लोगों से झगड़ा तक हो जाता है। :(
तो आप ही बताईये अब क्या करें. सांस लेना छोड़ दें?
जी, मैं भी सिगरेट पीने वालों से थोड़ा हट लेता हूँ जब वो सिगरेट फूंक रहे होते हैं. हालांकि कई सालों तक लोग मुझसे ऐसे ही बचा करते होंगे.
@ संजय तिवारी
इस विचार, इस नारे का अधिकाधिक प्रचार करें, यथासम्भव प्रतियाँ बनाकर भीड़भाड़ वाले स्थानों पर चिपकाएँ। ताकि लोग धूमपान की हानिकारक आदत से मुक्ति पाने का प्रयास करें।
@संजय तिवारी,
अजी साँस भरपूर लें, सिर्फ धूमयुक्त साँस छोड़ना बन्द कर दीजिए।
achhi jaankari hai.
धूम्रपान करने वालों को चेताने का अच्छा प्रयास है.
श्रीमान जी, मैंने भी एक ब्लॉग शुरू किया है - आवाज.ब्लॉगस्पॉट.कॉम . आप इसे देखेंगे तो मुझे अति प्रसन्नता होगी.
धन्यवाद,
संजीव कुमार
आपकी जानकारी बहुत महत्वपूर्ण है।
दीपक भारतदीप
धूम्रपान करने वालों से आम बंदों को जा तकलीफ होती है वो तो हमारे जैसे लोग ही जानते हैं। आपने बहुत सही मुद्दा उठाया है।
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