Secrets of Devanaagarii Sh
देवनागरी “श” का रहस्य
गूगल हिन्दी चिट्ठाकार चर्चा समूह में देवनागरी लिपि के "श" वर्ण तथा इससे बननेवाले संयुक्ताक्षरों के विविध रूपों के बारे में प्रश्नोत्तर एवं चर्चा चल रही हैं। चूँकि गूगल चर्चा समूह में सचित्र सोदाहरण उत्तर देना सम्भव नहीं हैं, अतः यहाँ समस्या का समाधान प्रस्तुत करने का प्रयास किया जा रहा है।
"देवनागरी लिपि का क्रम-विकास" शोध से स्पष्ट होता है कि तालू में जीभ के टकराने के उत्पन्न उष्म ध्वनि अर्थात् तालव्य "श" का लिखित रूप प्राचीन शिलालेखों, ताड़पत्र की पोथियों, भोजपत्र में लिखित पाण्डुलिपियों में निम्नवत् उपलब्ध होता है। कालक्रम में जल्दी लिख पाने के प्रयास में विभिन्न महानुभावों की हस्तलिपि में इसका रूप निम्नवत् स्वतः परिवर्तित होता रहा--
चूँकि देवनागरी के संयुक्ताक्षरों को लिखने के लिए आरम्भ में ऊपर से नीचे का क्रम अपनाया जाता था। अर्थात् एक व्यञ्जन के नीचे दूसरा व्यञ्जन लिखकर संयुक्ताक्षर बनाया जाता था, इसलिए लिखने में रेखांकन क्रम की सुविधा के लिए चित्र का 11वाँ क्रम संख्या वाला स्वरूप उपयुक्त पाया गया।
लेकिन कई संयुक्ताक्षरों को लिखने के लिए बायें से दायें का क्रम अधिक सुविधाजनक होने के कारण श के अधिकांश संयुक्ताक्षर "श” की खड़ी पाई को हटाकर या आधा अक्षर बनाकर प्रयोग करना अधिक सरल महसूस किया गया। यथा-
श्क श्ख श्क श्घ श्ङ
श्च श्छ श्ज श्झ श्ञ
श्ट श्ठ श्ड श्ढ श्ण
श्त श्थ श्द श्ध श्न
श्प श्फ श्ब श्भ श्म
श्य श्र श्ल श्ळ श्व
श्श श्ष श्स श्ह
उपर्युक्त संयुक्ताक्षर विण्डोज के मंगल फोंट में डिफॉल्ट रूप से प्रकट होते हैं। इनमें से अधिकांश बायें से दायें के क्रम में श की खड़ी पाई को हटाकर बनाए गए हैं। किन्तु श्च श्न श्र श्ल और श्व ऊपर से नीचे के क्रम में बनाए गए हैं।
अक्षरों की स्पष्टता तथा सौन्दर्य विधान को दृष्टि में रखते हुए ऊपर से नीचे के क्रम के ये संयुक्ताक्षर आम जनता के सामान्य प्रयोग में बने रहे।
चूँकि हिन्दी मैनुअल टाइपराइटर में 48 कुञ्जियों के अन्दर हिन्दी भाषा के अक्षरों को येन-केन प्रकारेण सीमित करना पडा था। और फिर मैनुअल टाइपराइटर में ऊपर से नीचे के क्रम में संयुक्ताक्षर टाइप करना अत्यन्त दुष्कर कार्य होता इसलिए बायें से दायें क्रम को ही प्राथमिकता दी गई।
“श्च” को “श्च” रूप में टाइप किया जाने लगा।
“श्न” को “श्न” रूप में टाइप किया जाने लगा।
“श्ल” को “श्ल” रूप में टाइप किया जाने लगा।
“श्व” को "श्व” रूप में टाइप किया जाने लगा।
किन्तु “श्र” को "श्र” रूप में टाइप करना सरल होने के बावजूद प्रचलन में यह नहीं आ पाया, क्योंकि इससे पाठकों को उलझन होती। लोग इसे “रर” अर्थात दो “र” पढ़ लेते।
यदि “श” के नीचे "र-कार” की तिर्यक रेखा लगाकर “श्र” बनाया जाता (देखें चित्र में क्रम सं.8) तो र-कार आधे "श्" को काटकर पीछे निकलता। लोगों को पढ़ने में और ज्यादा उलझन होती।
और फिर भारतीय संस्कृति में संस्कृत का शुभ सूचक (शुभंकर) "श्री" तो हर व्यक्ति तथा देवी-देवता के नाम के पहले जुड़ता है, अतः उसको इसी रूप में रखने का निर्णय लिया गया। एक अतरिक्त एवं स्वतंत्र "श्र" अक्षर का निर्माण करके टाइपराइटर में इसे टाइप करने की व्यवस्था की गई।
तदनुसार ट्रेडल छापेखाने में शीशे के बने टाइप्स का निर्माण किया गया। लेटर प्रेस में कई संयुक्ताक्षरों के टाइप्स अलग से बनाए गए। प्राचीन संस्कृत पाठ को उसी रूप में छापने के लिए "श" के ऊपर से नीचे क्रम में बने संयुक्ताक्षरों के टाइप्स अलग से बनाए गए।
कम्प्यूटरों द्वारा हिन्दी में छपाई की तकनीकी के आविर्भाव के बाद दोनों रूपों में संयुक्ताक्षरों को प्रकट करने की सुविधा देने का प्रयास किया गया। 8बिट अमानकीकृत फोंट्स में येन-केन प्रकारेण अक्षरों के टुकड़ों को जोड़-जाड़ कर हिन्दी पाठ को प्रकट किया जाता है। इसी कारण वहाँ पाठ (text) की वर्णक्रमानुसार छँटाई (alphabetical sorting) तथा खोज (search) करना सम्भव नहीं हुआ, न ही इसकी कोई जरूरत होती थी।
युनिकोड-देवनागरी के प्रचलन के बाद पाठ का भण्डारण तथा कम्प्यूटर के आन्तरिक संसाधन के लिए सिर्फ युनिकोड कोड-नम्बरों की जरूरत होती है। पारम्परिक रूप में देवनागरी पाठ के प्रदर्शन(Display) तथा मुद्रण(printing) के लिए ओपेन टाइप फोंट्स का सहारा लिया जाता है। माइक्रोसॉफ्ट के डिफॉल्ट हिन्दी फोंट में श्च, श्न, श्र, श्ल तथा श्व रूप को डिफॉल्ट रूप में दर्शाने करने का प्रावधान अन्तःनिर्मित है। विशेषकर संस्कृत के पण्डित इसी रूप में प्रयोग करने प्राथमिकता देते हैं।
लेकिन कुछ हिन्दीभाषी लोग मैनुअल टाइपराइटर के अनुक्रम में श्च, श्न, श्ल और श्व के रूप में संयुक्ताक्षरों को Display और Print करना चाहते हैं।
अतः निम्न दोनों प्रकार के "श+” के संयुक्ताक्षर प्रयोग में हैं, जो परस्पर के वैकल्पिक रूप ही हैं। कोई अलग अक्षर नहीं।
वैकल्पिक रूप में अक्षरों को प्रकट करने के लिए युनिकोड में दो विशेष कोड की व्यवस्था की गई है।
ZWJ = Zero Width Joiner (U200D)
हलन्त के बाद इसका प्रयोग करके दो व्यञ्जन-वर्णों को सामान्यतया ऊपर-से-नीचे-क्रम (Top to down sequence) मिलकर संयुक्ताक्षर बनाने के बदले बायें-से-दायें-क्रम (Left to right sequence) में मिलकर संयुक्ताक्षर बनाने के लिए किया जाता है। इसे टाइप करने के लिए विण्डोज के Inscript कीबोर्ड-लेआऊट में टाइप करने के लिए Contol+Shift+1 कुञ्जियाँ एक साथ दबानी पड़ती है। उदारहण के लिए “श्व” लिखने के लिए जहाँ श+हलन्त+व तीन कुञ्जियाँ दबानी पड़ती है, वहीँ “श्व” वैकल्पिक रूप में लिखने के लिए श+हलन्त+ZWJ+व ये चार कुञ्जियाँ दबानी पड़ती है। “क्ष” को “क्ष” के वैकल्पिक रूप में टाइप करना है तो क+हलन्त+ ZWJ+ष ये चार कुञ्जियाँ दबानी होंगी।
ZWNJ = Zero Width Non-Joiner (U200C)
हलन्त के बाद इसका प्रयोग करके दो व्यञ्जन-वर्णों को सामान्यतया संयुक्ताक्षर बनने से रोकने या “नहीं जुड़ने" के लिए अर्थात् मूल रूप में प्रकट करने लिए किया जाता है। इसे विण्डोज के Inscript कीबोर्ड-लेआऊट में टाइप करने के लिए Contol+Shift+2 कुञ्जियाँ एक साथ दबानी पड़ती है। उदारहण के लिए “श्व” को “श्व” के वैकल्पिक रूप में टाइप करना है तो श+हलन्त+ZWNJ+व ये चार कुञ्जियाँ दबानी पड़ती है। “क्ष” को “क्ष” के वैकल्पिक रूप में टाइप करना है तो क+हलन्त+ ZWNJ+ष ये चार कुञ्जियाँ दबानी होंगी।
बरहा IME में ZWJ को टाइप करने के लिए ^ (SHIFT+6) का तथा ZWNJ के लिए ^^ (दो बार SHIFT+6) का प्रयोग करना पड़ता है।
अन्य हिन्दी IME में इसके लिए अन्य व्यवस्था होगी। यदि ZWJ (U200D) और ZWNJ (U200C) को टाइप करने के लिए उस IME में कोई व्यवस्था नहीं हो तो इसके लिए उनके निर्माता से सम्पर्क करें।
प्रश्न : मंगल फोंट में “शृंगार” शब्द में “शृ” ऐसे डिफॉल्ट रूप में क्यों प्रकट होता है। इसे वैकल्पिक पुराने रूप में कैसे प्रकट किया जाए?
उत्तर : माइक्रोसॉफ्ट के मंगल ओपेन टाइप फोंट में "शृ" के वैकल्पिक रूप वाला वर्णखण्ड (glyph) नहीं है। इसलिए यह इसी रूप में प्रकट होता है। आशा है इसके अगले वर्सन में माइक्रोसॉफ्ट जोड़े। सीडैक के CDAC-GISTSurekh फोंट में भी "शृ” ऐसा ही प्रकट होता है। जबकि उसी सीडैक के CDAC-GISTYogesh फोंट में "शृ” वैकल्पिक रूप में (देखें चित्र-2 में क्रम सं.16) प्रकट होता है।
चूँकि मंगल फोंट में डिफॉल्ट रूप में श्च, श्न, श्र, श्ल, श्व पुराने रूप में प्रकट होते हैं। अतः "शृ" को भी पुराने रूप में ही डिफॉल्ट रूप से प्रकट होना चाहिए। जबकि इसे पुराने रूप में प्रकट करने के लिए कोई वर्णखण्ड की व्यवस्था ही नहीं है।
कई लोग गलती से श्र और श्न को एक समझ लेते हैं। विशेषकर छोटे अक्षरों में दोनों एक जैसे दिखते हैं। लेकिन श्र = श+हलन्त+र होता है। जबकि श्न = श+हलन्त+न होता है।
कई लोग "शृंगार" शब्द में "शृ" को “श्रृ” के रूप में गलती से लिख देते हैं। जबकि “शृ” = श+ृ (ऋ की मात्रा) होता है। “श्रृ” = श+हलन्त+र+ृ (ऋ की मात्रा) होता है, जो कि पूर्णतया गलत है।
“श” का वैकल्पिक रूप चित्र-2 में क्रम सं.3 में दर्शाया गया है। ध्यान से देखें इसमें “र-कार” नहीं लगा है।
कुछ लोग "श” के वैकल्पिक रूप को गलती से आधा "श” मान बैठते हैं जबकि आधा “श्” तो “श” के वैकल्पिक रूप की खड़ी पाई को हटा देने से बनेगा। जो निम्नवत् रूप में होगा।
वैकल्पिक रूपों के कारण उपजनेवाली समस्याएँ :
देवनागरी वर्णों या संयुक्ताक्षरों के वैकल्पिक रूप में प्रकट होने के कारण कम्प्यूटिंग में अनेक तकनीकी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। विशेषकर Sorting और Searching में कई समस्याएँ आती हैं। उदाहरण के लिए मान लीजिए किसी शब्दकोश में एक स्थान पर “श्वेता” यों लिखा गया है दूसरे स्थान पर “श्वेता” यों लिखा गया है। तो alphabetical order में sorting करने पर दोनों अलग अलग स्थान पर प्रकट होंगे। उदारहण के लिए Google.co.in में इण्टरनेट में "श्वेताम्बर" शब्द से खोज की जाए तो केवल उन्हीं पृष्ठों की सूची प्रकट होगी जिन्होंने "श्व” के लिए "श+हलन्त+व” का प्रयोग किया है।
यदि Google.co.in में इण्टरनेट में "श्वेताम्बर" शब्द से खोज की जाए तो केवल उन्हीं पृष्ठों की सूची प्रकट होगी जिन्होंने "श्व” के लिए "श+हलन्त+ZWJ+व” का प्रयोग किया है। वे समस्त पृष्ठ गायब रहेंगे जिन्होंने “श्वेताम्बर” के रूप में प्रयोग किया है।
कई Search-engine ZWJ और ZWNJ कुञ्जियों को ignore करके दोनों रूपों में भण्डारित शब्दों वाले वेबपृष्ठों को संसूचित भी करते हैं।
लेकिन यह एक और समस्या बन जाती है कि वैकल्पिक रूपों को Sorting में एक स्थान पर कैसे रखा जाए? क्या ZWJ और ZWNJ कुञ्जियों को Sort-engine द्वारा ignore किया जाए? या इनके लिए कोई अलग अलगोरिद्म बनाया जाए?
अतः आवश्यकता है देवनागरी लिपि के ऐसे वैकल्पिक स्वरूपों वाले वर्णों का एक सर्वमान्य स्वरूप मानकीकृत किया जाए। इसमें विशेषकर कम्प्यूटर और इण्टरनेट तकनीकी की दृष्टि से सरल रूप को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। और सभी को उसे अन्तर्राष्ट्रीय एकरूपता के लिए सहर्ष अपनाना चाहिए।
16 comments:
जानकारीपूर्ण लेख के लिए धन्यवाद।
वैसे मुझे लगता है कि हिंदी में ZWJ और ZWNJ का इस्तेमाल न ही किया जाए तो अच्छा है। इससे अनावश्यक रूप से छाँटने और क्रमांकन में जटिलता आएगी, जैसे कि आपके गूगल के उदाहरण से जाहिर है।
बहुत उपयोगी जानकारी देते हैं आप। देवनागरी तो रहस्यों का खजाना है। कृपया अन्य वर्णों/अक्षरों की व्युत्पत्ति और देवनागरी लिपि के तन्त्र-शास्त्र-सम्बन्धी रहस्यों पर भी समय निकालकर तकनीकी-आलेख लिखें तो विश्वभर के सभी लोग उपकृत होंगे।
आपने "श" वर्ण की पूरी गुत्थी को सुलझा कर रख दिया।
आपके निष्कर्षों और सुझावों पर अमल किए जाने की जाने की जरूरत है। आपने ठीक कहा कि,-
1. "शृ" को भी पुराने रूप में डिफॉल्ट रूप से प्रकट होना चाहिए। जबकि इसे पुराने रूप में प्रकट करने के लिए कई व्यवस्था है ही नहीं।
2. आवश्यकता है देवनागरी लिपि के ऐसे वैकल्पिक स्वरूपों वाले वर्णों को एक सर्वमान्य स्वरूप मानकीकृत किया जाए और सभी उसे अन्तर्राष्ट्रीय एकरूपता के लिए सहर्ष अपनाएँ।
कमाल का लेख है.. मुझे पता नहीं था कि मेरे एक प्रश्न से हमें इतनी जानकारी मिलेगी।
एक बात कहना चाहूंगा कि मुझे व्यक्तिगत रूप से ZWJ टाइप करने से जो शब्द बनता है वह ज्यादा अच्छा लगा।
गुजराती में भी श्वेतायन को श्वेतायन ही लिखा जाता है।
बरहा IME में ZWJ को टाइप करने के लिए ^ (SHIFT+6) का तथा ZWNJ के लिए ^^ (दो बार SHIFT+6) का प्रयोग करना पड़ता है।
मैने इस टिप्प्णी में ZWJ के लिये ^(shift+6) कुंञी का उपयोग एक ही बार किया फिर भी सही शब्द टंकित हुआ।
ज्ञानवर्धन के लिये आभार. बहुत सहेजने योग्य आलेख है.
जैसी आशा थी वैसा ही पाया. बेहद उपयोगी जानकारी है और इसके लिए साधुवाद. सौभाग्य से मैं इस कीबोर्ड का इस्तेमाल नहीं करता हूं अत: मुझे ऐसी समस्याएं नहीं आतीं. श्वेतांबर या श्वेतांबर बिना किसी झंझट के लिख सकता हूं. आपका आलेख पढ़ने के बाद ZWJ और ZWNJ के झमेले को जान गया और कम से कम अब मुझे अपने कीबोर्ड को बदलने के बारे में कोई ऊहापोह नहीं बची है. मेरी नजर में रेमिंगटन ही सर्वश्रेष्ठ है. रवि जी का कहना सही है आपकी दी हुई जानकारी से सभी हिंदी भाषी लाभांवित होंगे. आप बहुत ही प्रशंसनीय कार्य कर रहे हैं. पुन: उपयोगी जानकारी के लिए शुक्रिया.
एक और शानदार लेख। आपने सभी संशय दूर कर दिए। श् से बनने वाले सभी संयुक्ताक्षरों का पूर्ण ज्ञान हो गया। इतनी अच्छी और विस्तृत जानकारी तो व्याकरण की किसी पुस्तक में भी इकट्ठे मिलना दुर्लभ है।
आपकी "देवनागरी लिपि का क्रम-विकास" नामक शृंखला बहुत अच्छी चल रही है। साधुवाद!
@सागर चन्द नाहर
"मैने इस टिप्प्णी में ZWJ के लिये ^(shift+6) कुंञी का उपयोग एक ही बार किया फिर भी सही शब्द टंकित हुआ।"
यदि आप "श्व" को "श्व" रूप में लिखना चाहेंगे तभी आपको ZWNJ अर्थात् ^^ का प्रयोग करना पड़ेगा।
@ संजय
"सौभाग्य से मैं इस कीबोर्ड का इस्तेमाल नहीं करता हूं अत: मुझे ऐसी समस्याएं नहीं आतीं. श्वेतांबर या श्वेतांबर बिना किसी झंझट के लिख सकता हूं"
आप रेमिंगटन कीबोर्ड लेआऊट का इस्तेमाल करते हैं। इसमें "श्व" (तथा तदनुसार सभी आधे अक्षर)लिखने के लिए जो कुञ्जियाँ दबानी पड़ती है, उसके प्रोग्राम में ZWJ का प्रयोग अन्तर्निहित रूप से स्वतः होता है, किन्तु उपयोक्ता के समक्ष प्रकट नहीं होता।
बढिया लेख,
मेरी भी कुछ शंकाओं का समाधान हुआ..
बहुत धन्यवाद हरिराम जी..
बहुत उपयोगी जानकारी थी यह मै इससे वंचित ही रह जाती अगर आज आपके चिट्ठे पर न आती...
बहुत-बहुत शुक्रिया हरिराम जी...
सुनीता(शानू)
जानकारीपूर्ण लेख के लिए धन्यवाद.
पौराणिक ज्ञानवर्धक जानकारी उपलब्ध कराने के लिये धन्यवाद। हो सकता हो कि संस्कृत के विद्वान श्वेता शब्द को इस प्रकार लिखने को प्राथमिकता और मान्यता देते हों। मेरी हिन्दी के एक प्रकाण्ड विद्वान से इस सम्बन्ध में चर्चा हुई तो उन्होंने इसे सिरे से नकार दिया है और इस पर क्षोभ व्यक्त किया है। साथ ही कहा है कि इस भेडचाल को रोकना मेरे अकेले के बस का नहीं है। उन विद्वान का नाम व पता आपके संदर्भ के लिये यहॉं पर प्रकाशित कर रहा हूँ।
श्रीमान भगवतीप्रसाद जी देवपुरा
प्रधानमंत्री
साहित्य मण्डल
श्रीनाथद्वारा (राज0)
देवपुरा सा0 वर्तमान में हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग के अध्यक्ष भी है।
"श" से बनने वाले सभी संयुक्ताक्षरों को "संस्कृत २००३" नामक फॉण्ट सही रुप से दर्शाता है।
देखें - संस्कृत २००३ – हिन्दी, संस्कृत आदि हेतु सर्वश्रेष्ठ यूनिकोड देवनागरी फॉण्ट
सर आधा कैरकटर कैसे लिखाएगा मंगल फोंट में
Unknown जी, किसी वर्ण को आधा करने के लिए हलन्त (्) टाइप करें जो इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड में अंग्रेजी की d अक्षर वाली कुंजी पर है।
वाह। अत्यंत जानकारीपूर्ण विवेचना। सादर आभार।
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