20 Sept 2007

रामसेतु तोड़ने सम्बन्धी पर्यावरणीय दृष्टि2

कोलकाता से प्रकाशित दैनिक समाचारपत्र 'सन्मार्ग' दिनांक 19 सितम्बर,2007 के पृष्ठ-3 पर रामेश्वरम् से श्रीलंका तक के रामसेतु के तोड़ने से उपजनेवाले पर्यावरण सम्बन्धी नुकसान और कुछ और प्रकाश डाला गया है।

ओड़िशा के केन्द्रापड़ा में विश्व प्रसिद्ध "ओलिव रिडले" प्रजाति के कछुए समुद्री मार्ग से आते हैं तथा यहाँ विहार करते हैं। इन कछुओं के बचाव में लगे वैज्ञानिकों के अनुसार इन बड़े आकार के दुर्लभ कछुओं को "सेतुसमुद्रम्" परियोजना के निर्माण से खतरा है। उनके अनुसार इस समुद्री चैनल के निर्माण के बाद ओलिव रिडले कछुए प्रजनन के लिए ओड़िशा के समुद्री तटों पर नहीं आ पाएँगे क्योंकि "पोल्क स्ट्रीट" मार्ग में जहाजों के आवागमन होगा एवं ये कछुए "गहिरमाथा" एवं प्रान्त के अन्य तटों पर नहीं आ पाएँगे। यह जानकारी बेंगळूरु में पर्यावरण के लिए कार्य करनेवाली संस्था "एंट्री" की वैज्ञानिक आरती श्रीधर ने दी है। चार वैज्ञानिकों सहित इस इलाके का मुआयना करने आयीं श्रीधर ने यह जानकारी दी।

उन्होंने बताया कि सेतुसमुद्रम् केनाल प्रोजेक्ट 167 किलोमीटर लम्बा है एवं इसके इलाके में विशेष मछलियों, कछुओं, सीपों सहित अनेक दुर्लभ समुद्री जीवों की विलुप्तप्राय हो चुकी प्रजातियाँ रहती हैं। इस प्रोजेक्ट के निर्माण से इन सभी प्रजातियों का नाश हो जाएगा।

इसी कारण उन्होंने मांग की है कि इस प्रोजेक्ट के निर्माण कार्य के पहले केन्द्र सरकार को पूरे इलाके के जीवों के बारे में एवं इस परियोजना से जीवों पर पड़नेवाले प्रभाव की समीक्षा करानी चाहिए।

राज्य वन्यजीव संस्था के सचिव विश्वजीत महान्ति ने भी कहा है कि इन कछुओं पर ट्रांसमीटर लगाकर किए गए परीक्षणों से पता चला है कि ये पोल्क स्ट्रीट के रास्ते से ही ओड़िशा में प्रवेश कर यहाँ के तटों पर प्रजनन करते हैं।

उल्लेखनीय है कि ओड़िशा के समुद्री तटों पर अक्सर बड़े कछुए भी आते हैं। कई कछुओं का आकार तो 9 फीट लम्बाई, 7 फीट चौड़ाई और 5 फीट ऊँचाई तक का भी होता है। जिन्हें रेल-पार्सल द्वारा कोलकाता तथा अन्य महानगरों में भेजते वक्त रेलवे स्टेशनों पर भी देखा गया है।

इस परियोजना से समुद्र में व्यापक प्रदूषण के कारण तटवर्ती वनस्पतियों को भी भारी हानि होने तथा तटवर्ती इलाकों का क्षरण होने की भी आशंका व्यक्त की गई है।

इस सम्बन्धी पिछले लेख की कड़ी रामसेतु तोड़ने सम्बन्धी पर्यावरणीय दृष्टि

6 comments:

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

मुश्किल यह है कि सेतु समुद्रम परियोजना विरोधी ये बातें कर ही नहीं रहे हैं. उन्होने इसका आधार सिर्फ राम नाम को बना लिया है और राम नाम का कुर्सी के लिए इतना इस्तेमाल हो चुका है कि अगर आकलन कर लें तो राम भी परेशान हो जाएँ.

Anonymous said...

Is desh ki janta bhi paryavaran ki jagah dharm aur bhagwaan ke naam par hi ikathhi hokar chalti hai isliye dal bhi isi baat ko bhuna rahe hain.
Jab janta aankh band karke aisi baaton ki peechen bhagna chod degi ye dal usi ke baad sudhrenge.
Aur paryavaran ki chinta roj ki jindagi mein hai kise? har kisi ko paisa kamane se matlab hai.

रवीन्द्र प्रभात said...

आपके प्रयास सराहनीय है और में अपने ब्लॉग पर आपका ब्लॉग लिंक कर दिया है।
रवीन्द्र प्रभात

बसंत आर्य said...

राम राम कुछ नही सिर्फ़ राजनीति का चुनावी तामझाम बन कर रह गया है

Anonymous said...

सत्ययुग में संसार-भर में एक ही भाषा होगी- 'हिन्दी'....अच्छे बिचार है ...अच्छा लगा आपको पढना ....बधाई .हमारे ब्लोग पे भी आपका स्वागत है .

रवीन्द्र प्रभात said...

जो कहना चाह रहे हैं उसमें आप खरे उतरे हैं.अच्छा लगा आपको पढना, बधाई स्वीकारें।इस क्रम को बनाएँ रखें....../एक शेर मूलहिज़ा फर्माईये-
मूँह में राम बगल में छुरी जो रखते वे
पाते हैं सम्मान हमारी बस्ती में।