भारत में भी अब डीजल के सस्ते वनस्पतीय विकल्प 'बायो-डीजल' की पैदावार काफी मात्रा होने लगी है। किन्तु आम जनता को यह सस्ता विकल्प उपलब्ध नहीं हो पाता है। इतनी मात्रा में उत्पादित बायो डीजल कहाँ चला जाता है?
कुछ घटनाओं देखा गया है कि कुछ 'बायो-डीजल' उत्पादक इसको आम जनता को न बेचकर सीधे पेट्रोल पम्पों मालिकों को ही (18 से 25 रुपये प्रति लीटर की विविध दर पर) बेच देते हैं। पेट्रोल पम्प प्रबन्धक इसे सीधे पेट्रोलियम वाले सामान्य डीजल की टंकी में ही मिला देते हैं और सामान्य डीजल के निर्धारित महंगे मूल्य (लगभग 37 रुपये प्रति लीटर) पर बेचते हैं और मिलावट कर अतिरिक्त मुनाफाखोरी करते हैं।
राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों के कुछ ग्रामीण स्थानों में बायो-डीजल 18 से 26 रुपये प्रति लीटर की विविध दरों पर मिल जाता है। लेकिन सामान्यतया देश के अन्य स्थानों पर इसके दर्शन तक नहीं होते। लेले जी के अनुसार सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कम्पनियों ने बायो-डीजल का मूल्य 25 रुपये प्रतिलीटर की घोषणा की है। भारत के महामहिम राष्ट्रपति जी ने राष्ट्रपति भवन के मुगल गार्डेन में भी इसके पौधे लगवाए हैं। इसकी खेती करके देश में जगंली आदिवासी पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए आय के अतिरिक्त स्रोत मिलने की आशा जहाँ एक ओर है, दूसरी ओर वहीं डी-वन ऑयल, रिलायन्स, गोदरेज एग्रोवेट, इमामी आदि बड़ी बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ भी बड़े पैमाने पर इसकी खेती में जुट चुकी हैं, जिनसे प्रतियोगिता करना उन गरीब आदिवासियों के लिए सम्भव नहीं होगा।
भारत में बायो-डीजल की बड़े पैमाने पर खेती होने लगी है। केन्द्रीय तथा राज्य सरकारों द्वारा भी इसके उत्पादन के लिए विभिन्न व्यक्तियों, संस्थाओं और समुदायों को प्रोत्साहन दिए जा रहे हैं, जमीन उपलब्ध कराई जा रही है और आवश्यक बीज तथा तकनीकी जानकारी एवं अन्य प्रकार सहायता भी उपलब्ध कराई जा रही है। इसकी खेती का भारतीय परिदृश्य विकसित होता जा रहा है।
बायो डीजल का अर्थ लोग सामान्यतः जैविक पदार्थों से उत्पन्न तेल समझ सकते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। बायोडीजल जेट्रोफा नामक वृक्ष के फलों से निकला तेल होता है। जेट्रोफा का भारतीय नाम 'रतनज्योत' है। जेट्रोफा की हालांकि संसार में विविध प्रजातियाँ हैं तथा इससे बननेवाले डीजल की गुणता भी अलग अलग होती है।
विश्व भर में मोटरगाड़ियों, रेलगाड़ी, अन्य मशीनों तथा इंजनों आदि को चलाने के लिए मुख्य ईंधन पेट्राल एवं डीजल है, जिसकी मांग दिनों दिन बढ़ती जा रही है तथा इसके मूल्य भी तेजी से बढ़ते ही जा रहे हैं। अतः ईंधन के वैकल्पिक उपायों की तलाश भी की जा रही है। हालांकि अब एलपीजी, सीएनजी, बैटरी से भी चलनेवाली मोटरगाड़ियों के मॉडल बाजार में आ गए हैं, किन्तु पेट्रोल एवं डीजल का पूर्ण विकल्प नहीं बन सके हैं। पेट्रोलियम पदार्थों के भण्डारों के विश्व से खत्म हो जाने तथा बढ़ते प्रदूषण को रोकने के लिए नए संसाधनों की तलाश के फलस्वरूप जेट्रोफा की खोज हुई। ऊर्जा के अक्षय स्रोत के रूप में बड़ी आशा की किरणें मिली है बायो डीजल से।
जेट्रोफा के फलों को पेरने पर सीधे जो द्रव निकलता है, वह बिल्कुल डीजल तेल के जैसा होता है। इसे फिर से किसी प्रकार से संसाधित करने या साफ करने की जरूरत नहीं होती। सीधे डीजल से चलनेवाली मोटरगाड़ी, रेलगाड़ी या अन्य इंजनों में ईंधन के रूप में डालकर उपयोग किया जा सकता है। तथा सामान्य डीजल में मिलाकर भी इसका उपयोग किया जा सकता है।
जेट्रोफा या रतनजोत का पेड़ बंजर व पथरीली भूमि से उगता है तथा पनपता है, अतः इसकी खेती के लिए किसी कृषिभूमि का नुकसान नहीं उठाना पड़ता।
अप्रेल 2003 में भारत सरकार के योजना आयोग के तत्वावधान में बायो-ईंधन के विकास के लिए गठित एक समिति ने विभिन्न प्रकार के अध्ययन करने के बाद रतनजोत की सिफारिश की थी और आशा व्यक्त की थी इस फसल को बढ़ावा देने से भारत की कुल डीजल की आवश्यकता का लगभग 20% तक इससे पूरा किया जा सकेगा। सुयोजित रूप से इसकी फसल को बढ़ाने पर सन् 2013 तक 1.3 करोड़ टन बायो-डीजल के उत्पादन की परिकल्पना की गई।
जेट्रोफा एक अखाद्य वनस्पति है, जिसे कोई पशु या जीव-जन्तु नहीं खाते। अतः इसकी फसल को जंगली जानवरों या कीड़ों आदि से सुरक्षा का कोई खतरा नहीं होता और कोई विशेष चहारदीवारी या बाड़ लगाने की व्यवस्था भी नहीं करनी पड़ती।
बायो-डीजल के उत्पादन के लिए अनेक समुदाय आगे आए हैं। जैव-प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए इसकी विभिन्न नई प्रजातियों के विकास के लिए भी अनुसन्धान कार्य जारी हैं, ताकि रतनजोत के फल से अधिक परिमाण में तेल निकल सके।
रतनजोत का पेड़ तीन वर्ष में फल देना शुरू कर देता है। शुष्क जलवायु में इसकी पैदावार अधिक अनुकूल होती है। पौधों के कुछ बड़े होने तक ही इसकी सिंचाई करनी पड़ती है। इसके पौधों को 2 से 3 मीटर की दूरी पर लगाने से पेड़ पूरा विकसित होता है और पैदावार अधिक मिल पाती है। बायो डीजल से परिवहन के क्षेत्र में ईंधन की समस्या का कुछ हद तक हल मिल सकेगा।
किन्तु आम उपभोक्ता को सस्ते मूल्यों में तो तभी मिल पाएगा, जब बड़ी बड़ी फर्मों और कम्पनियों के मालिक एवं प्रबन्धक मुनाफाखोरी और अधिक लाभ के 'लोभ' को "काम-क्रोध-लोभ.." में से एक पाप समझें।
5 May 2007
बायो डीजल भी... मिलावट/मुनाफ़ाखोरी की चपेट में...
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3 comments:
बड़ी विडम्बना है देश की, अमीर और अमीर होते जा रहे हैं। आम जनता तक तो सस्ती वस्तुएँ पहुँच ही नहीं पा रही हैं।
बायो डीजल का प्रयोग बढ़े, यह अपने आप में अच्छा है. हिन्दुस्तान में अगर 20% फ्यूल बायो होने लगा तो ईकॉनमी को जबरदस्त फायदा होगा. थोड़ी - बहुत मुनाफाखोरी छोटा मसला है.
आपने सम्पीड़ित हवा के इंजन से रेल चलाने की बात की है. अभी तो उससे एम्डीआई-टाटा की कार चले. रेल चलाने की कोई चर्चा नहीं है.
आपका लेख बहुत अच्छा है.
आपके इस लेख से बहुत अधिक जानकारियां मिलीं. शुक्रिया. लिखते रहें !!
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