23 Apr 2007

जयललिता ने करोड़ों हिन्दी-भाषियों को अपना फ़ैन बना लिया.... हिन्दी में भाषण देकर...

जयललिता ने करोड़ों हिन्दी-भाषियों को अपना फ़ैन बना लिया.... हिन्दी में भाषण देकर...

आज इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में एक चुनावी सभा में जयललिता ने पहली बार हिन्दी में भाषण देकर करोड़ों हिन्दीभाषियों को अपना फ़ैन बना लिया। (आज राष्ट्रीय सहारा दूरदर्शन न्यूज चैनल में समाचार देखा..) सुश्री जयललिता जी मुलायम सिंह के निमन्त्रण पर तीसरे मोर्चे के पक्ष में प्रचार हेतु पधारी थीं।

सचमुच, लगता है अब तमिलनाडु की लोकप्रिय नेता तथा पूर्व मुख्यमन्त्री जयललिता जी का राष्ट्रीय राजनीति में आने का तोरण पूरी तरह खुल गया है। क्योंकि बिना हिन्दी का सहारा लिए भारत की राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में सफलता पाना दुर्लभ ही होता है।

धन्यवाद जयललिता जी! इतनी मधुर, इतनी सुन्दर और इतनी शुद्ध हिन्दी बोल लेती हैं आप, बहुतों को आपका भाषण सुनकर आश्चर्य हुआ होगा! किन्तु हम जानते हैं कि आपको हिन्दी बहुत अच्छी तरह आती है। अटल बिहारी बाजपेयी जी तथा पत्रकारों से हिन्दी में बात करते हुए हम पहले भी आपको सुन चुके हैं।

किन्तु तमिलनाडु की प्रान्तीय राजनीति की लहर के विरुद्ध हिन्दी को प्रोत्साहित करना उनके स्थानीय राजनैतिक भविष्य के लिए शायद नुकसानदायक होता, यही सोचकर हिन्दी में भाषण नहीं देती थीं जयललिता जी।

यह सौभाग्य की बात है, कि अब उन्होंने प्रत्यक्ष अनुभव कर लिया है कि हिन्दी ही एकमात्र वह तारिणी माता है, जो राष्ट्रीय राजनीति में लोकप्रियता दिला सकती है। आधे से अधिक भारतवर्ष की आम जनता की भाषा तथा आधे से अधिक संसार में समझी जानेवाली भाषा में बोलने से ही तो सरलता से अधिकांश लोग आपके विचारों सुन व समझ सकेंगे न।

सोनिया जी विदेशी मूल की होने के बावजूद बड़े परिश्रम से हिन्दी सीखकर हिन्दी में बोलकर ही तो भारतवर्ष की जनता के हृदय सिंहासन पर 'राजमाता' की तरह विराजमान हो पाईं है। उनका पहला हिन्दी भाषण भुवनेश्वर में हुआ था। चूँकि उनको देवनागरी लिपि कठिन लगती थी, इसलिए उनके भाषण का मसौदा हिन्दी भाषा में किन्तु रोमन लिपि में डायाक्रिटिक मार्क लगाकर बनाया जाता था। अगर सोनिया जी ने हिन्दी में बोलना नहीं शुरू किया होता, केवल अंग्रेजी का सहारा लिया होता, तो वे कदापि भारतीय जनता के दिल में स्थान न बना पातीं। उनको जनता के दिल की राजमाता बनानेवाली "हिन्दी" देवी हैं, हिन्दी वाणी है। सचमुच 'हिन्दी' परम पूज्यनीय है। सचमुच आराध्य सरस्वती देवी हैं।

अब जयललिता जी ने भी हिन्दी विरोध छोड़कर हिन्दी का अनुसरण आरम्भ कर दिया है। अब वह दिन दूर नहीं लग रहा, जब हिन्दी विरोध सिर्फ इतिहास के किसी पन्ने के कोने में छिप कर रह जाएगा।

लोग तमिलनाडु को हिन्दी विरोधी प्रान्त मानते आए हैं, लेकिन वास्तव में देखा जाए तो सबसे ज्यादा व सबसे अच्छे हिन्दी के विद्वान तमिलनाडु से ही हैं। उदाहरण के लिए पूर्वाञ्चल व दक्षिणाञ्चल विभिन्न केन्द्रीय सरकारी कार्यालयों, बैंकों, उपक्रमों में कार्यरत हिन्दी अधिकारियों का सर्वेक्षण करें तो पाएँगे कि अधिकांश हिन्दी अधिकारी तमिलनाडु मूल के हैं।

चेन्नै (पूर्व मद्रास) आई.आई.टी, सी-डैक, चैन्नै से लेकर अनेकानेक प्रौद्योगिकी संस्थाओं ने हिन्दी (तथा अन्य भारतीय भाषाओं) के विशेष सॉफ्टवेयर बनाए हैं, अनेक समस्याओं का समाधान करके कई प्रकार की उपयोगी युटिलिटी प्रदान की है। कुछ तकनीकी विद्वानों से चर्चा करने पर पता चला कि उनका विरोध हिन्दी से नहीं, बल्कि देवनागरी लिपि में कालक्रम में आ गए कुछ विकारों, तर्कहीन क्रम, अवैज्ञानिक वर्ण तथा संयुक्ताक्षरों के विविध रूपों आदि से हैं।

जो भी हो, अब लगता है कि वह दिन दूर नहीं, जब राष्ट्रभाषा हिन्दी समग्र भारतीय जनता के दिल में निर्विरोध 'राष्ट्रीय-मातृभाषा' का स्थान अधिकार कर लेंगी।

धन्यवाद जयललिता जी!, राष्ट्रीय राजनीति में आपकी सफलता की कामना करते हुए 50 करोड़ हिन्दी भाषी तहेदिल से आपका साथ देने का आश्वासन देंते हैं। बस! जो शुरूआत आपने आज की है, उसपर आगे बढ़ती रहें!

5 comments:

Anonymous said...

हरीराम जी;
नेताओं एवं कारपोरेशन का कोई माई बाप नहीं होता. ये तो अपना मतलब देखते हैं. अगर इन्हे हिन्दी से वोट मिलेंगे तो ये हिन्दी बोलेंगे.
हिन्दी तो आप जैसे सेवा भावियों की सेवा से प्रसन्न होती है, जयललिताओं की मतलबी बातों से नहीं.

ललित said...

तमिलनाडु में एक राजनैतिक हथियार के हिन्दी विरोध का प्रचार भी तो इन्हीं राजनेताओं ने ही किया था, जिसकी चोट समग्र देश भुगत रहा है। स्वार्थी तो सभी हैं, जो भी हो, उनके द्वारा हिन्दी में बोलने से हिन्दी जगत का काफी कुछ लाभ ही होगा।

SHASHI SINGH said...

मैं तो कहता हूं स्वार्थे की भी भाषा बने हिंदी... क्योंकि नि:स्वार्थ हिंदी सेवा करने वाले लेखकों-कवियों को फटेहाल-भूखे-नंगे ही रहे जबकि सही मायने में वे सिंहासन के अधिकारी थे। अगर सिंहासन के लालच में भी कोई हिंदी को गले लगाये तो बुरा क्या है... आखिरकार आधार हिंदी का ही तो बढ़ रहा है।

और एक बात, हमारे हिंदी प्रेमी मुलायम सिंहजी के लिए...
नेताजी, अगली बारी आपकी है... ताली दोनों हाथ से बजती है। अम्मा की रैली में तमिल में बोलने का अभ्यास शुरू कर दीजिये।

Anonymous said...

Hindi ka kaya bhalaa kreygi in logo koo aapna bhala joo karna hay dhney hay yeh netaa joo mokaa parney par ghadey ko baap orr matlab na hoo too in koo baap bhi .....hay ram! bachaa mere desh koo

Gyan Dutt Pandey said...

अत्यंत हिन्दी मय लेख! हिन्दी प्रेम के लिये बधाई.
जयललिताम्मा जो हैं सो हैं. उन्हें छोड़ें. नेता तो वैसे भी घड़ियाली जीव हैं. पर जहां तक हिन्दीं के प्रचार-प्रसार का मुद्दा है, आपका प्रसन्न होना पूर्णत: नैतिक है - राजनैतिक नहीं!
ये शशि सिंह जी सही कह रहे हैं - हिन्दी वोट की भाषा बने; हिन्दी नोट (पैसा) की भाषा बने और हिन्दी चोट(एग्रेसिव एडवांसमेंट)की भाषा बने. हिन्दी दकियानूसी न रहे.
(Hariraamji canyou do away with word verification for giving comments, please. I have some problem with the eyes)