4 Jan 2007

घोड़े की नाल का महत्व

ज्योतिष (Astrology) में ग्रहों (विशेषकर शनि) की पीड़ा के निवारण के लिए घोड़े की नाल की अंगूठी (मुद्रिका ring) बनवाकर मध्यमा अंगुली में शनिवार को पहनने की सलाह दी जाती है। इसे विभिन्न रत्नों से भी अधिक प्रभावशाली और चमत्कारी माना जाता है।

आखिर क्यों? इसका क्या महत्व है?

ब्रह्माण्ड में हर ग्रह-नक्षत्र निरन्तर भ्राम्यमाण है। सभी चक्कर लगाते रहते हैं। अपनी अपनी धुरी पर अपनी अपनी गति की लय के अनुसार। इन सभी के घूमने का आधार है परस्पर की गुरुत्वाकर्षण शक्ति। इसी गुरुत्वाकर्षण शक्ति का प्रभाव हम प्रत्यक्ष रूप से पूर्णिमा या अमावस्या के दिन समुद्र में आनेवाले ज्वार-भाटे के रूप में देखते हैं। ग्रह-नक्षत्रों का प्रकाश(जो दृश्यमान है) तथा उनकी गुरुत्वाकर्षण शक्ति (जो अदृश्य, किन्तु अधिक प्रभावशाली है) का प्रभाव हमारे जीवन के हर कर्म-क्षेत्र पर पड़ता है।

घोड़े के पैर के नीचे खुर होते हैं(जिसे उसके नाखून माना जाता है, जो dead cell) , उनको तेजी से दौड़ते वक्त टूट या घिस जाने से बचाने के लिए लोहे की अर्धगोलाकार ('U' Shaped) नाल बनाकर लोहे के काँटों के सहारे ठोंक दी जाती है। इसे घोड़े के लिए लोहे के जूते भी कह सकते हैं। घोड़े में बल बहुत होता है। घोड़े की शक्ति अर्थात् अश्वशक्ति (Horse-power) को आधार मानकर ही विभिन्न मशीनों की शक्ति को मापा जाता है। घोड़ा बहुत तेज गति से दौड़ता है। जब सड़क पर या पथरीली जमीन पर घोड़ा दौड़ रहा होता है, तो उसके पैर के चिन्गारियाँ निकलती दिखाई दे जाती हैं। क्योंकि पैर में ठोंकी हुई लोहे की नाल बहुत तीव्रता के साथ टकराती है तो तीव्र घर्षण के चिन्गारियाँ निकल उठती है।

सृष्टि का आरम्भ जिस प्रकार ब्रह्माण्ड में विस्फोट एवं संलयन से माना जाता है। परमाणु बम से जैसे विशालकार विस्फोट होते हैं। इसी प्रकार घोड़े के पैर में लगी लोहे की नाल और कठोर धरती के टकराव से लौह-अणुओं में विस्फोटक घर्षण से जिस ऊर्जा की उत्पत्ति होती है, वह ऊपर से चिन्गारियों के रूप में दिखती है, किन्तु अन्दर से अद्भुत ब्रह्माण्डीय ऊर्जा को समेकित करती जाती है।

इस प्रकार टकराव से उस लोहे की नाल में अद्भुत ऊर्जा के प्रकम्पन भरते जाते हैं। जो विभिन्न प्रकार के खतरनाक आघातों से रक्षा करने की सामर्थ्य प्रदान करते हैं।

अन्त में वह नाल घिस-घिस कर एक दिन घोड़े के पैर से अपने आप छिटक कर निकल जाती है। तो घोड़ा कुछ लंगड़ा कर दौड़ता दिखाई देने लगता है, तो उसका मालिक उसके फिर दूसरी नई नाल ठुँकवाता है। उस पुरानी निकली हुई घोड़े की नाल से मुद्रिका (अंगूठी) तथा ताबीज या विभिन्न यन्त्र आदि बनाकर उपयोग किए जाते हैं, जो ग्रह-दशा, भूत-प्रेत बाधा, अन्य दोषों का शमन करने की शक्ति प्रदान करते हैं। कई लोग अपने घर के प्रवेश द्वार की चौखट पर घोड़े की नाल ठोंक देते हैं, जो विभिन्न आपदाओं से रक्षा करती हुई मानी जाती है।

घोड़े की नाल को आग में तपा देने पर उसकी शक्ति खत्म हो गई मानी जाती है। इसलिए घोड़े की नाल की अंगूठी को यों ही ठोंक-पीट कर बनाया जाता है। इसे तपा कर झलाई, सिलाई कर जोड़ा नहीं जाता। इसलिए इसके छोर जुड़े हुए नहीं होते, बल्कि कटे ही रहते हैं। यह देखने भद्दी-सी टेढ़ी मेढ़ी दिखाई देती है। किन्तु यदि सही है, चमत्कारी परिणाम देती है।

घोड़े की नाल के पुराने काँटे भी स्वयं में विशिष्ट ऊर्जा को समेटे हुए विशेष महत्व के माने जाते हैं, जिनका ज्योतिष, तन्त्र और मानसिक चिकित्सा में उपयोग होता है।

सावधानियाँ--

आजकल लोग घोड़े की नाल का महत्व जानकर घोड़े के मालिक से मांगकर मुँहमांगे दाम देकर नाल खरीद लेते हैं। घोड़े का मालिक तत्काल घोड़े के पैर से नाल निकाल कर बेच देता है और उसे दूसरी नाल पहना देता है। एक मेले में एक बार देखा गया कि एक घोड़े का मालिक एक ही दिन में एक-एक कर इस प्रकार अपने घोड़े के पैर से 150 बार नाल निकाल कर बेच चुका था। लेकिन जानबूझकर उसके पैर निकाली गई ऐसी नाल का लगभग कोई महत्व नहीं होता। क्योंकि उसमें वह शक्ति जमा नहीं हुई होती।

कई दुकानों में कच्चे लोहे की मुद्रिका बनाकर 2-4 रुपये में बनी बिकती हुई दिखाई देती है। वह घोड़े की नाल से बनी है या सामान्य लोहे की- इस बात का कोई भरोसा नहीं होता।

हालांकि विश्वास के आधार पर सामान्य लोहा पहनने पर भी शनि-ग्रह की कुछ शान्ति हो जाती है, लेकिन वह चमत्कारी परिणाम उपलब्ध होगा, इसमें कुछ शंका रहती है।

अतः यदि किसी को सौभाग्यवश दौड़ते हुए घोड़े के पैर के छिटक कर निकल पड़ी नाल मिल जाए और वह उसका सही उपयोग करे तो उसे भाग्यशाली माना जाता है।

7 comments:

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

मान्यवर,
नमस्कार!

आपकी ज्योतिष शास्त्र के बारे मेँ जानकारी अद्भुत है - आप ने कहाँ से इसे सीखा ?
अधिक जानकारी पढना चाहुँगी -

लावण्या

Hridayesh said...

इस लेख मे मेरे अनुसार कुछ त्रुटियाँ हैं जिन्हे मैं सुधारना चाहूँगा,त्रुटि होने पर सुधार करे और मुझे सूचित करें पर त्रुटि होना नही चाहिये।
१.आपने कहा कि तापमान करोड़ों डिग्री सेंटीग्रेड होने का अनुमान किया गया है, जो कि एक भ्रान्ति है। असल मे सूर्य का तापमान लगभग ६००० डिग्री सेंटीग्रेड ही है।
२.ब्लेक होल ऐसे तारे हैं जिनका तापमान करोड़ों डिग्री सेंटिग्रेड (-) ऋणात्मक है। परन्तु ब्रह्मांड मे किसी भी वस्तु का ताप -273 डिग्री सेंटीग्रेड से कम नही हो सकता।
घोडे की नाल के बारे मे छोटी सी जानकारी
घोडे की नाल मे चुम्बकत्व की शक्ति होती है, और गर्म करने से चुम्बक का चुम्बकत्व नष्ट हो सकता इसलिये घोडे की नाल को गर्म नही करते।

Suresh Kumar said...

shree maan ji,
ghode ki naal aapne gharki chokhat par lagane ka koi sahi samya ya sahi din time batayen,
aapki atti kripya hogi,
suresh kumar

Anonymous said...

मै पिछले महीने जयपुर (राजस्थान) गया था. वहां पर जब मै घूम रहा था तो अचानक मैंने देखा एक काले घोङे के पैर में घुङचालक नाल लगा रहा था, मैंने उनसें पूछा कि पुरानी नाल अपने आप निकली है या आपने निकाली है? तो उन्होंने कहा कि यह नाल अपने आप निकली है इसलिए मै घोङे के पैर में नई नाल लगा रहा हूं. मेरे कहने पर उन्होंने नाल मेरे को दे दी एवं कहा कि आप नाल का जोङा (2 नग नाल) ले लें, जोङा बहुत शुभ होता है.मेरे हां कहने पर उन्होंने नाल के जोङे को घोङे के मुहं में डाला फिर मुहं सें बाहर निकाल कर मुझे दे दिया, और कहा कि घोङे के मुहं में देने सें नाल और ज्यादा शुभ फल देती है.मैंने नाल जिस दिन ली वह शुक्रवार का दिन था. अब आप ये बताएं कि, क्या एक नाल की जगह जोङा लेना ज्यादा फलदायी है ? क्या नाल को घोङे के मुहं में डालना शुभ होता है ? क्या शुक्रवार को नाल लेना शुभ है ? क्या काले घोङे की नाल अपने आप न निकले तो निकाल कर लेने सें शुभ फल देती है ? कृपा समाधान बताएं. Bimal Dugar

हरिराम said...

@ SURESH said...
सुरेश जी, शनिवार प्रातः अपने घर की चौखट पर लगाएँ तो बेहतर होगा।

हरिराम said...

@ Bimal Dugar

नाल का जोड़ा बेहतर परिणाम देगा। घोड़े के मुँह में डालकर नाल देना अर्थात् उसके दाँत से टकरा कर देना, एक टोटका माना जाता है, जो अच्छा परिणाम देता है। अपने आप निकली हुई नाल ही सही परिणाम देती है। निकाल कर दी गई नाल कोई खास फलदायी नहीं होती। जो नाल घोड़े के पाँव जितने अधिक दिन तक लगी रही होगी, घोड़े के दौड़ने पर जितनी अधिक घिसी हुई होगी, उतनी ही ज्यादा शक्ति व ऊर्जायुक्त होगी।

Anonymous said...

Namashkar sir ji,
mere paas v thoda sa tukra ghore ka naal hai,lekin mujhe malum nahi hone k karan main sonaar k paar jakar use aag mein pitwakar ek anguthi banawa liya,
to plz bataeye ab main kya karu,mere paar ab hai v nahi dusra.