28 Mar 2007

एल॰सी॰डी॰ कम्प्यूटर मॉनिटरों से भारी बचत

कम्प्यूटर के एल॰सी॰डी॰ मॉनिटरों से भारी बचत होती है, भले ही इनका मूल्य थोड़ा ज्यादा क्यों न लगे।





पर्सनल कम्प्यूटरों का प्रचलन आरम्भ होने के समय से इनके साथ सी.आर.टी. (CRT = Cathode Ray Tube) वाले मॉनिटरों का उपयोग होता था। इस क्षेत्र में तीव्र प्रगति होने से इनकी रिजोल्यूशन क्षमता 32 बिन्दु प्रति इंच (DPI) से बढ़कर आज 108 (DPI) तक पहुँच गई। किन्तु आजकल नए समतल दृश्यपटल वाले एल.सी.डी (LCD = Liquid Crystal Display) मॉनिटरों को उपयोग तेजी से बढ़ रहा है। इनकी रिजोल्यूशन क्षमता 200 डीपीआई से भी अधिक हो गई है जिससे अत्यन्त सूक्ष्म दृश्य को भी साफ देखा जा सकता है।

आसानी से उठाकर ले जाने की सुविधा के लिए हल्के तथा कम स्थान घेरने तथा अत्यल्प विद्युत खपत आदि गुणों के कारण सर्वप्रथम एल.सी.डी मॉनिटरों का उपयोग लैपटॉप व नोटबुक कम्प्यूटरों में हुआ। इसके पश्चात आज डेस्कटॉप कम्प्यूटरों में भी उनका उपयोग धड़ल्ले से होने लगा है।

एल.सी.डी. मॉनिटरों का बाजार मूल्य अभी पुराने सी.आर.टी. मॉनिटरों की तुलना में लगभग दुगुने से भी अधिक है, किन्तु निकट भविष्य में उपभोक्ताओं की मांग में वृद्धि के मद्देनजर इनका मूल्य और सस्ता होने की उम्मीद है। फिर भी वर्तमान इन्फोसिस, सत्यम, आईबीएम, विप्रो, डीएसएल आदि सूचना प्रौद्योगिकी कम्पनियों ने अपने कार्यालयों के डेस्टकॉप कम्प्यूटरों के साथ पुराने सी.आर.टी. मॉनिटरों को बदलकर एल.सी.डी. मॉनिटरों की ही स्थापना की है। क्योंकि आरम्भिक लागत अधिक होने के बावजूद समग्र हिसाब लगाने से एल.सी.डी. मॉनिटरों से काफी बचत तथा लाभ स्पष्ट हुए हैं, जिनमें से प्रमुख निम्नवत् हैं :

कम स्थान घेरना : सी.आर.टी. मॉनिटर 3 से 4 वर्गफुट का स्थान घेरते हैं तो एल.सी.डी. मॉनिटर के लिए मात्र 2 से 4 ईंच चौड़ाई का स्थान पर्याप्त है।

स्पष्ट पाठ व चित्र : इनका रिजोल्यूशन अधिक होने के कारण अत्यन्त छोटे अक्षर, चित्र, ग्राफ और अभियान्त्रिकी डिजाइन आदि स्पष्ट देखे जा सकते हैं।

स्वास्थ्य सुरक्षा : सी.आर.टी. मॉनिटरों से विद्युत-चुम्बकीय लहरें एवं इलेक्टॉनिक विकिरण (radiation) उत्सर्जित होते हैं, जिनका मानव-स्वास्थ्य पर अत्यन्त बुरा असर पड़ता है। कम्प्यूटर पर अधिक समय काम करनेवालों की आँखों की दृश्यशक्ति जल्द खराब हो जाती हैं, उन्हें विशेष चश्मे लगाने पड़ते हैं। उनकी अन्य ज्ञानेन्द्रियों पर कुप्रभाव से वे सिरदर्द, तनाव, उच्च-रक्तचाप, स्नायुओं में दर्द व कम्पन, अपच, मस्तिष्क-तंत्रिका शोध आदि के चिर-रोगी बन भी बन सकते हैं। इनकी तुलना में एल.सी.डी. मॉनिटरों से विकिरण नगण्य होते हैं और स्वास्थ्य हानि का खतरा नहीं रहता। एक अनुमान के अनुसार इन विकिरणों के प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष प्रभाव से चिकित्सा खर्च लगभग 20 प्रतिशत बढ़ सकता है।

समतल दृश्यपटल : समतल पटल होने के कारण एल.सी.डी. मॉनिटर पर पाठ व चित्र ऐसे प्रकट होते हैं, जैसे सामने खुली पुस्तक में दिखते हैं।

वातानुकूल व्यय कम : सी.आर.टी. मॉनिटर 40 से 90 डिग्री सेंटीग्रेड ताप भी वातावरण में उत्सर्जित करते हैं, जिसके शीतलीकरण हेतु प्रति 7 से 8 कार्यघण्टों के दौरान वातानुकूलन की बाबत लगभग 6 किलोवाट अर्थात् 6 यूनिट बिजली अधिक खर्च होती है। साथ ही वातानुकूलन यन्त्रों से पैदा होनेवाले ग्रीनहाउस प्रभाव तथा हानिकर गैस से वातारवरण को नुकसान का खतरा भी कम होगा। विद्युत उत्पादन हेतु होनेवाले प्राकृतिक संसाधनों की हानि ताथा प्रदूषण फैलने के खतरों से भी बचत होगी।

विद्युत खपत में बचत : विभिन्न मॉडलों के अनुसार एल.सी.डी. मॉनिटरों में मात्र 18 से 25 वाट ही विद्युत खपत होती है जबकि सी.आर.टी. मॉनिटर हेतु 100 से 160 वाट विद्युत की जरूरत होती है, अर्थात लगभग 7-8 गुना अधिक विद्युत खपत होती है। इस प्रकार एल.सी.डी. मॉनिटरों के प्रयोग से 7-8 कार्यघण्टों के दौरान विद्युत खपत की बाबत लगभग 4.00 रु. की बचत हो सकती है।

अनुरक्षण व्यय में कमी : भारत जैसे ग्रीष्म प्रधान देश के परिवेश में सी.आर.टी. मॉनिटर अक्सर अधिक खराब होते पाए गए हैं। किसी की पिक्चर ट्यूब जल जाती है तो किसी का ई.एच.टी. यूनिट खराब हो जाता है। किसी की स्क्रीन का फोस्फोरस खराब हो जाता है। इनकी मरम्मत व पुर्जों के बदलने में भारी लागत आती है। इनकी तुलना में एल.सी.डी. मॉनिटरों के अनुरक्षण की लागत कम आती है। क्योंकि कम वोल्टेज उपयोग के कारण ये अधिक टिकाऊ होते हैं।

हालांकि नई तकनीकी होने के कारण भारत के सामान्य नगरों में एल.सी.डी. मॉनिटरों की मरम्मत हेतु अच्छे सर्विस सेंटरों का अभाव है, और अभी सिर्फ पुर्जों को बदला जा सकता है। किन्तु तेजी से बढ़ती मांग से शीघ्र ही हर स्थान पर सेवा उपलब्ध होगी।

आजकल बाजार में कई बड़े शो-रूम्स में, दुकानों में, घरों में एल.सी.डी. टीवी भी लगे हुए देखने को मिलते हैं, जो दीवारों में कैलेण्डर की तरह टंगे होते हैं। लागत अधिक होने के बावजूद इनके कुल कार्यकाल में होनेवाले प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष खर्च का हिसाब करने पर एल.सी.डी. उपकरण अधिक सस्ते बैठते हैं। एक सामान्य कार्यालय का अनुमान निम्न तालिका में दिया गया है :-

(ब्लॉगर में फिलहाल तालिका (table) प्रविष्टि की सुविधा नहीं होने के कारण यह plain text में बदल गया है)

मद सी.आर.टी.उपकरण मद एल.सी.डी. उपकरण
प्रति एकक विद्युत खपत प्रति एकक विद्युत खपत 150 वाट x 8 घण्टे = 1.2 कि.वा. 20 वाट x 8 घण्टे = 0.16 कि.वा. x रु.3.20 प्रति यूनिट की दर से रु. 3.84 x रु.3.20 प्रति यूनिट की दर से रु. 0.51


वातानुकूलन (A.C.) हेतु विद्युत खपत वातानुकूलन (A.C.) हेतु विद्युत खपत 60 डिग्री सेंटीग्रेड सृजित ताप x 8 घण्टे 5 डिग्री सेंटीग्रेड सृजित ताप x 8 घण्टे1 कि.वा.घं./यूनिट=13 डिग्री शीतलीकरण 1 कि.वा.घं./यूनिट=13 डिग्री शीतलीकरण60-30=30/13xरु.3.20 रु.7.38 5-3=2/13xरु.3.20 रु. 0.49

कुल विद्युत व्यय रु. 8.22 कुल विद्युत व्यय रु. 1.00

विद्युत व्यय अन्तर (प्रति दिन) रु. 7.22 x 5 वर्ष x 290 कार्यदिवस प्रतिवर्ष हेतु रु.10,469.00

वर्तमान बाजार मूल्य (14") रु. 7,200.00 वर्तमान बाजार मूल्य (14") रु. 14,500.00

दोनों का अन्तर रु. 7,300.00

कुल बचत(5 वर्ष में) रु.10,469 - रु. 7,300 = रु. 3,160.00

अप्रत्यक्ष स्वास्थ्य व पर्यावरण सुरक्षा हेतु प्रतिदिन रु.1.00 x 290 दिन/प्रतिवर्षx 5 वर्ष=रु.1450 जोड़ने पर रु. 4,610.00

स्थान किराया रु.10 प्रति माह/वर्गफुट x 2 फुट (अधिक स्थान का अन्तर) x 60 महीने=रु.1200 जोड़ने पर रु. 5,810.00

उपरोक्त अनुमान के अनुसार यदि किसी बड़े कार्यालय में प्रयुक्त लगभग 250 कम्प्यूटरों के सी.आर.टी मॉनिटरों के बदले एल.सी.डी मॉनिटर लगाने पर होनेवाली बचत का हिसाब लगाएँ तो यह राशि रु.14,52,500 और लगभग 1000 कम्प्यटरों का उपयोग करनेवाले कार्यालय के लिए लगभग 50 लाख रुपये हो सकती है। और फिर स्वास्थ्य, विशेषकर आँखों की सुरक्षा का हिसाब लगाएँ तो बचत का हिसाब अनगिनत रुपये के लाभ में प्रदर्शित होगा।

(अक्षर-2004 में प्रकाशित)

24 Mar 2007

इनस्क्रिप्ट की-बोर्ड ले-आऊट की समस्याएँ

CDAC,Pune के द्वारा भारतीय भाषाओं के कम्प्यूटर में इनपुट के लिए विकसित इन्स्क्रिप्ट(Inscript) की-बोर्ड की सबसे बड़ी खूबी है कि इसमें किसी भी भारतीय भाषाओं में कम्प्यूटर में इनपुट किया जा सकता है। सभी के लिए एक ही लेआउट है।

लेकिन इसकी सबसे बड़ी खराबियाँ निम्नवत् है:-

(1) मात्राओं को अलग से याद एवं टाइप करना पड़ता है। (जबकि भारतीय भाषाएँ मूल रूप में अंग्रेजी से भी अधिक सरल, सपाट और सीधी हैं। सिर्फ मूल व्यंजन+स्वर+अनुनासिकादि क्रम से समस्त अक्षर और संयुक्ताक्षर स्वयंचालित रूप से प्रकट हो सकते हैं।)

इस प्रकार कुल 16 कुँजिया अनावश्यक रूप से अधिक याद रखनी पड़ती है। जबकि इनकी कोई आवश्यकता ही नहीं है। इन 16 कुँजियों की जगह बहुधा उपयोग के चिह्न या अन्य वर्णों के लिए प्रयोग हो सकता था।

(2) ट, ठ, ड, ढ, नुक्ता, ऑ, य आदि अक्षर दाहिनी ओर कोने में होने के कारण छोटी उंगली से टाइप करना कठिन होता है और बारम्बार त्रुटियाँ होती हैं।

(3) देवनागरी में बहुधा प्रयोग में आनेवाले चिह्नों (punctuation marks = : ; ' " / ? ! आदि) के लिए भी बारम्बार "भाषा/लिपि toggle कुंजी" को दबाकर अंग्रेजी ले-आऊट में अनावश्य रूप से लौटना पड़ता है।

(4) हलन्त का बारम्बार अनावश्यक रूप से प्रयोग करना पड़ता है। उलटा क्रम चलता है। आधे अक्षर के लिए दो कुंजियाँ दबानी पड़ती है, जबकि पूरे अक्षर के लिए सिर्फ एक। जिससे ध्वन्यात्मक इनपुट में भारी बाधा आती है। इस दृष्टि से इन्स्क्रिप्ट को ध्वन्यात्मक आधार पर निर्धारित होना गलत सिद्ध करता है।

(5) यह उच्च गति से टंकण/इनपुट क्षमता प्रदान नहीं कर पाता। गलतियों की सम्भावनाएँ अधिक रहती हैं, विशेषकर दाहिने छोर पर स्थित कुँजियों से बननेवाले शब्दों में।

(6) व्यंजनों को दाहिनी ओर और तथा स्वरों को बाईं ओर उलटे क्रम में रखा गया है। जबकि व्यंजन के बाद ही स्वर लगता है। देवनागरी तथा भारतीय भाषाएँ मुख्यत: बायें से दायें क्रम में लिखी जाती हैं, न कि अरबी-फारसी की तरह दायें से बायें क्रम में। अतः व्यंजनों को बाईं ओर तथा स्वरों को दाहिनी ओर होना चाहिए था।

मेरे विचार में हिन्दी तथा भारतीय भाषाओं के लिए सर्वश्रेष्ठ IME की अवधारणा 1984-85 में Former-NCST, Mumbai, (वर्तमान CDACMumbai) द्वारा विकसित 'विविधा' नामक सॉफ्टवेयर में प्रयोग की गई थी, जिसकी भारत सरकार के "इलेक्ट्रॉनिक कोर्पोरेशन ऑफ इण्डिया" द्वारा मार्केटिंग की जाती थी और जो सिर्फ 300 रुपये में बेचा जाता था। किन्तु यह DOS में चलता था, और Windows की लोकप्रियता तथा त्रुटिपूर्ण ISCII-1991 के मानकीकरण बाद यह अधिक प्रयोग में नहीं आ सका। आज आवश्यकता है इसको पुनर्जीवित करने की।

(7) इनस्क्रिप्ट की-बोर्ड में हिन्दी के अक्षर-विन्यास को अलग से तथा अंग्रेजी के अक्षर-विन्यास को अलग से याद करके टंकण अभ्यास की जरूरत होती है, जिससे दिमाग पर दोगुना बोझ पड़ता है।

(8) इन्सक्रिप्ट की-बोर्ड से और भी तेज गति से तथा गलती-रहित इनपुट किया जा सकेगा, यदि इसके लेआऊट में संशोधन किया जाए भारतीय भाषाओं की पूर्ण ध्यन्यात्मकता को ध्यान को रखते हुए। अतः आवश्यकता है इसमें और सुधार करने की।