So called Environmentalists
धिक्कार! पर्यावरणविदो!
उन पर्यावरणविदों को धिक्कार है, जो कूड़ा-करकट जलाकर बिजली बनानेवाले संयंत्रों की स्थापना तथा प्रचालन का विरोध करते हैं। आन्दोलन करके उन्हें बन्द करवा देते हैं। किन्तु सड़कों के किनारे, घनी बस्ती व बाजार के बीच यत्र-तत्र-सर्वत्र कूड़े के ढेर इकट्ठा कर आग लगानेवाले लोगों, नगरपालिका के कर्मचारियों का विरोध नहीं करते। ऐसे तथाकथित पर्यावरण-प्रेमी चुल्लू भर पानी में डूब मरें!!!!
अक्सर देखा जाता है कि नगरपालिका के कर्मचारी ही रोज सुबह सड़कों आदि पर झाड़ू बुहारकर जगह जगह सड़क किनारे कूड़े के ढेर इकट्ठा कर उसमें आग लगाकर भाग जाते हैं। इस कूड़े में प्लास्टिक कचरा भी होता है तो कागज व गीले वनस्पतीय अपशिष्ट भी। जो घंटों तक सुलग सुलग खारा, जहरीला धुआँ तथा दुर्गन्ध फैलाते रहते हैं। कूड़ा ढोकर लेने के साधनों के अभाव में, या परिश्रम करने से कतराकर वे जहाँ तहाँ जलाकर कूड़ा नष्ट कर देने का प्रयास करते हैं। इससे निकलनेवाले जहरीले धुएँ को साँस में जाते से सर्दी, गले व आँखों की बीमारियाँ, दिल की बीमारियाँ, रक्त की अशुद्धता, हृदयरोग, पेट के रोग, हड्डियों के रोग आदि अनेकानेक बीमारियाँ फैलती रहती है। दुर्गन्ध के कारण राहगीरों, जनता को सिरदर्द, नजला, उलटी शिकायतें आदि होते रहते हैं। ऊपर से आसपास का तापमान बढ़ता है। ग्लोबल वार्मिंग बढ़ती है।
जबकि कूड़ा-करकट को बिजली बनानेवाले संयंत्रों में वैज्ञानिक एवं तकनीकी तरीके से भट्ठियों में जलाया जाता है, हवा पम्प की जाती है, ऊँची चिमनी से धुआँ दूर आकाश में छोड़ा जाता है। जिससे बस्ती/बाजार के लोगों के सीधे श्वसन व स्वास्थ्य पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता। कूड़ा जलकर ताप सृजित होता है, वाष्प बनती है, जो टर्बाईन घुमाकर बिजली बनाने में सहयोग करती है। कोयला, तेल आदि ईँधन की बचत होती है।
बैंगलोर आदि कुछ शहरों में सड़कों के किनारे, बस्ती/बाजार के बीच कूड़ा-करकट जलाने पर पाबंदी लगाई गई है। भारी जुर्माना प्रभारित किया जाता है। ऐसा सभी गाँवों और शहरों में अनिवार्य रूप से लागू किया जाना चाहिए।
पर्यावरण को बचाने के लिए आवश्यक है कि राष्ट्रीय स्तर पर हर सरकारें ऐसे आदेश जारी करें कि जितने भी कारखाने आदि हैं, ताप-बिजली संयंत्र हैं, जिनमें कोयला, पेट्रोलियम आदि जलाकर ताप सृजित किया जाता है, वे अनिवार्य रूप से अपने कारखाने के कम से कम एक यूनिट में कूड़ा-करकट जलाने की सुविधा स्थापित करें।
हर नगरपालिका, नगर निगम आदि द्वारा कड़ा करकट ढोकर उन कारखानों तक पहुँचाने की अनिवार्य व्यवस्था की जाए, ऐसे कठोर आदेश जारी किए जाएँ।
भूमण्डलीय ताप वृद्धि, (global warming), सर्वजन स्वास्थ्य (public health), पर्यावरण सुरक्षा (environment safty) के लिए ऐसे कठोर आदेश जारी किए जाने और इनका कड़ाई से अनुपालन किया जाना आवश्यक है।
धिक्कार है! ऐसे तथाकथित पर्यावरणविदों को, जो कूड़ा करकट को कारखानों में जलाने का तो विरोध करते हैं, किन्तु शहरों, बस्तियों, सड़कों, बाजारों के बीच कूड़े के ढेर को जलानेवाले मूर्ख तथा आलसी लोगों को रोकते नहीं। चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए ऐसे पर्यावरण-प्रेमियों को।
10 Jun 2009
धिक्कार! पर्यावरणविदो!
Posted by हरिराम at 18:11
Labels: ग्लोबल वार्मिंग, पर्यावरण, स्वास्थ्य
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4 comments:
aapne bahut achha kaarya kiya hai ...KHATRE KI GHANTI KI TARAF ISHARA KIYA HAI
kachre me aaglagaane walon ko dandit kiya jana chahiye...........
bahut achhi post
badhaai !
बढिया व प्रेरक पोस्ट लिखी है।
बहुत दिनों बाद आपके ब्लोग पर आना हुआ है । आपकी यह पोस्ट जागरूकता से भरी हुई है । जिस स्थिति के बारे मे आपने बताया यह कमोबेश सभी शहरों की है ।
केन्द्रीय प्रदूषण बोर्ड और राज्य प्रदूषण बोर्ड के अधिकारियों को कर्मचारियों को भी चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए।
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