1 Sept 2007

देवनागरी संयुक्ताक्षर "ज्ञ" का रहस्य

देवनागरी संयुक्ताक्षर "ज्ञ" का रहस्य
Secret of Devanaagarii Conjunct "jna"


हिन्दी चिट्ठाकार गूगल समूह में इस परिचर्चा कड़ी में "ज्ञ" के शुद्ध रूप तथा उच्चारण के बारे में कई प्रश्नोत्तर चल रहे हैं।

कुछ लोग इसका उच्चारण "ग्य" जैसा करते हैं, कुछ लोग "ग्यँ" उच्चारण करते हैं, कुछ "द्‍न्य" जैसा, कोई "ग्न" जैसा तो कोई "ज्न्य" जैसा उच्चारण करते हैं। भारत के विभिन्न स्थानों पर इस देवनागरी संयुक्ताक्षर का लोग विविध प्रकार से उपयोग करते हैं।

विविध विद्वानों ने अपने विचार निम्नवत् व्यक्त किए हैं--

विज्ञान शब्द को

-- कुछ उत्तर भारतीय 'विग्यान' (vigyan) पढ़ते है।
-- कुछ दक्षिण भारतीय 'विज्नान' (vijnaan) पढ़ते हैं।
-- कुछ अन्य लोग 'विज्यान' (vijyan) पढ़ते हैं।
-- गूगल के ट्रांस्लिट्रेशन सेवा में "vigyaan" टाइप करने पर "विज्ञान" प्रकट होता है।
-- कुछ अन्य IME में "vijyaan* टाइप करने पर भी "विज्ञान" प्रकट होता है
-- महाराष्ट्र में कुछ मराठी लोग "विज्ञान" को "vidnyan" बोलते हैं। जैसे "ज्ञानेश" को "dnyanesh".
-- कुछ मराठी "विग्न्यान" (vignyaan) उच्चारित करते हैं।
-- गुजरात में "विग्नान" (vignan) उच्चारित होता है।

अधिकांश लोग यज्ञ को "यग्यँ" उच्चारित करते हैं।

"ज्ञ" का असली उच्चारण खो गया है। आज लोगों को तलाश है इसके मूल व शुद्ध रूप की। सभी हिन्दी, संस्कृत, नेपाली, राजस्थानी, मराठी विद्वानों तथा देवनागरी लिपि के विभिन्न भाषी उपयोगकर्ताओं की जानकारी के लिए यहाँ "ज्ञ" संयुक्ताक्षर की व्युत्पत्ति के बारे में कुछ प्रकाश डाला जा रहा है।

जैसे क्ष= क्+ष्+अ को मिल कर बना है, परन्तु कुछ लोग उसे "छ" या ख" या "ख्य" जैसा उच्चारित करते हैं। अछर, अख्यर, लछमी आदि।

उसी तरह "ज्ञ"= ज्+ञ्+अ अर्थात ज+्+ञ (091C+094D+091E) मिल कर बना है। इसका शुद्ध रूप "ज्‍ञ" होता है।
"विज्ञान" शब्द का शुद्ध रूप "विज्‍ञान" है जिसे रोमन(Extended Latin with diacirtic marks) में "vijñān" लिखा जाता है।

लेकिन Basic Latin में "vijnaan" लिखकर काम चलाया जा सकता है, जो निकटतम शुद्ध रूप होगा। कुछ वैदिक संस्कृत पण्डित ही "ज्ञ" का शुद्ध उच्चारण (ज्+ञ) कर पाते हैं।

भारत में संविधान की 8वीं अनुसूची में घोषित 22 अधिकारिक (official) भाषाएँ हैं तथा भारत में सैंकड़ों बोलियाँ हैं। हर 20 कोस में भाषा बदल जाती है, हर 4 कोस में पानी। भौगोलिक, सांस्कृतिक कारणों से उच्चारण बदल जाता है तदनुसार लिपि/लेखन क्रम भी। परन्तु भाषा में आए "विकार" को भी विकास माना गया है।

"ज्ञ" की व्युत्पत्ति के बारे में "देवनागरी लिपि का क्रमविकास" नामक शोध में स्पष्ट उल्लेख है।

प्राचीन संस्कृत-आधारित वर्ण-परम्परा के अनुसार देवनागरी तथा अन्य भारतीय लिपियों में संयुक्ताक्षर ऊपर से नीचे के क्रम में संयुक्त करके लिखे जाते थे। किन्तु आधुनिक युग में जब देवनागरी तथा अन्य भारतीय लिपियों के टंकण यन्त्रों का आविष्कार हुआ, तो भारतीय लिपियों के वर्णों को अंग्रेजी के 52 अक्षरों की सीमित कुञ्जियों के ऊपर ही येन-केन-प्रकारेण काट-छाँट कर पैबन्द की तरह चिपका कर समयोजित करना पड़ा। टंकण यंत्रों की सुविधा के लिए देवनागरी लिपि में बायें से दायें क्रम में व्यंजन की खड़ी पाई को हटाकर संयुक्ताक्षर निर्माण का सरल उपाय अपनाया गया।

किन्तु कालक्रम में "ज्ञ" का सही उच्चारण गुप्त हो गया। तथा देवनागरी टाइपराइटर में सीमित कुञ्जियों के कारण "ञ" अक्षर को नहीं रखा जा सका था। इसलिए इसे ज्‍ और ञ को जोड़कर टाइप करने के शुद्ध रूप के वजाय एक स्वतन्त्र संयुक्ताक्षर के रूप में लगाया गया।

ज+ञ = ज्ञ की व्युपत्ति कैसे हुई, इसे स्पष्ट करने के लिए नीचे के चित्र में लिखते वक्त रेखाओं(strokes) के क्रम को दर्शाया गया है। (1) ज के नीचे ञ लिखकर, (2) कलम की नोंक को उठाए बिना जल्द लिखते वक्त इसकी रेखाएँ जुड़ीं (3) अन्तिम रेखा खड़ी पाई से न मिलकर नीचे लटकी रह गई, (4) और संक्षिप्त रूप इस प्रकार बन गया (5) फिर संयु्क्ताक्षर का यह रूप बना, (6) एक व्यक्ति की लिखावट में ऐसा रूप प्रकट हुआ, (7) अन्य व्यक्ति की लिखावट में ऐसा रूप प्रकट होता है, (8) माईक्रोसॉफ्ट के मंगल फोंट में यह रूप प्रकट होता है। (9) भारत सरकार के CDAC-GISTSurekhN.TTF फोंट में ऐसा रूप प्रकट होता है।




इसी प्रकार देवनागरी लिपि का क्रमविकास हुआ। जल्द लिखने के उद्देश्य से धीरे धीरे संयुक्ताक्षर अपने आप बनते चले गए। कालक्रम में उनका असली उच्चारण तथा मूल रूप लोप हो गया। यह बिगड़ते बिगड़ते आज इण्टरनेट तथा युनिकोड के युग में जटिल लिपियों (Complex Scripts) के समूहों में शामिल होने को मजबूर हो गई है। जबकि आरम्भ में यह रोमन व लेटिन लिपि से भी सरल, सपाट और एकमुखी थी।

देवनागरी लिपि के अन्य वर्णों तथा संयुक्ताक्षरों के रहस्यों पर इस आलेख-शृङ्खला के अगले अंकों में प्रकाश डाला जाएगा।

12 comments:

अभय तिवारी said...

अच्छी जानकारी.. शुक्रिया..

ghughutibasuti said...

इस लेख के लिए बहुत बहुत धन्यवाद । आशा है आप हिन्दी सम्बन्धित सभी शंकाओं का निवारण
करेगें ।
घुघूती बासूती

Anonymous said...

इस लेख ने तो मन मोह लिया. बधाई स्वीकारें.
विकि में डालने लायक लेख है. साधूवाद.

अगर एक ऑडियो फाइल सही उच्चारण की साथ में जोड़ दी जाये तो सोने पे सुहागा हो जाये.

संजीव कुमार said...

शब्द विच्छेद की अच्छी जानकारी पेश की है.
धन्यवाद.

संजीव कुमार said...

शब्द विच्छेद की अच्छी जानकारी पेश की है.
धन्यवाद.

मैथिली गुप्त said...

आप एकदम सही कह रहे हैं. मुझे तो बचपन में एकबार ज्ञ के गलत उच्चारण के लिये कड़ी मार पड़ी थी.
हमने हिन्दी पैड में विज्ञान के लिये vijnaan ही रखा था, जो आजतक चलता आ रहा है.

ePandit said...

वाह हमेशा की तरह शानदार आलेख। आपका चिट्ठा तो जानकारी का खजाना बनता जा रहा है।

यद्यपि 'ज्ञ' का यह प्रश्न बहुत पहले ही परेशान कर चुका था तथा इसके सही रुप बारे पिताजी से ज्ञान प्राप्त किया था, परंतु इसकी उत्पति बारे आपने बहुत ही अच्छी तरह समझाया। धन्यवाद!

Udan Tashtari said...

बढ़िया ज्ञान. आभार.

अजित वडनेरकर said...

ज्ञानवर्धन के लिए शुक्रिया। मराठी लोग इसका उच्चारण ग+न+य = ग्न्य के रूप में करते हैं। कुछ लोग इसमें जबर्दस्ती द ध्वनि भी लगाते हैं।

Shastri JC Philip said...

ज्ञ की व्युत्पत्ति के बारे में काफी जानकारी मिली. आभार.

अब सवाल यह है कि भविष्य के लिए इस अक्षर का क्या रूप हो एवं उच्चारण क्या हो. याद रखें कि करोडो हिन्दीभाषियों का उच्चारण अब बदलना असंभव है -- शास्त्री जे सी फिलिप

जिस देश में नायको के लिये उपयुक्त आदर खलनायकों को दिया जाता है,
अंत में उस देश का राज एवं नियंत्रण भी खलनायक ही करेंगे !!

सुनीता शानू said...

हरीराम जी बहुत दिनो से आपकी पोस्ट नही पढ़ पाई हूँ आज देखा तो लगा बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति है पढ़ने पर उबाऊ भी नही लग रहा...
जानकारी अच्छी लगी शुक्रिया...

सुनीता(शानू)

शैलेश भारतवासी said...

याहू और गूगल समूह पर हुई चर्चा को आपने यहाँ प्रकाशित करके अच्छा किया, अधिक लोग लाभान्वित हो पायेंगे।